धार्मिक

तरावीह का बयान, क़िस्त:3

20, रकअत तरावीह की हिक्मत

20 रकअत तरावीह की हिक्मत ये है के रात और दिन में कुल 20 रकअत फ़र्ज़ व वाजिब हैं, 17 रकअत फ़र्ज़ और 3 रकअत वित्र और रमज़ान में 20 रकअत तरावीह मुक़र्रर की गईं ताके फ़र्ज़ व वाजिब के मदारिज (दर्जा) और बढ़ जाएं और उनकी खूब तकमील हो जाए जैसा के बहरुर्राइक़ जिल्द 2, फसले फ़ी क़यामे रमज़ान सफ़ह 67 पर है अल्लामा हब्ली रहमतुल्लाही तआला अलैह ने ज़िक्र फ़रमाया के तरावीह के 20 रकआत होने में हिक्मत ये है के वाजिब और फ़र्ज़ जो दिन रात में कुल 20 रकअत हैं उन्हीं की तकमील के लिए सुन्नतें मशरूअ् हुई हैं तो तरावीह भी 20 रकअत हुई ताके मुकम्मल करने वाली तरावीह और जिनकी तकमील होगी यानी फ़र्ज़ व वाजिब दोनों बराबर हो जाएं, और मिराक़ीउलफ़लाह के क़ौल “و هى عشرون ركعة” के तहत अल्लामा तहतावी रहमतुल्लाहि तआला अलैह तहरीर फ़रमाते हैं:
20 रकअत तरावीह मुकर्रर करने में हिक्मत ये है के मुकम्मल करने वाली सुन्नतों की रकआत और जिनकी तकमील होती है यानी फ़र्ज़ व वाजिब की रकआत की तादाद बराबर हो जाएं।
और दुर्रे मुख्तार मअ् शामी जिल्द 1, मुबहस सलातुल मरीज़ सफ़ह 495 में है:
तरावीह 20 रकअत है और 20 रकअत तरावीह में हिक्मत ये है के मुकम्मल मुकम्मल के बराबर हो।
और दुर्रे मुख्तार की इसी इबारत के तहत शामी में नहर से मनक़ूल है:
वाज़ेह हो के फ़राइज़ अगरचे पहले से भी मुकम्मल हैं लेकिन माहे रमज़ान में इसके कमाल की ज़्यादती के सबब ये मुकम्मल यानी 20 रकअत तरावीह बढ़ा दी गई तो वो खूब कामिल हो गए। (अनवारुल हदीस, सफ़ह 150—151)

तरावीह पढ़ाने वाले हाफ़िज़ को सवाब कम मिलता है और तरावीह सुनने वाले मुक़्तदियों को सवाब ज़्यादा मिलता है। (फ़तावा फ़क़ीहे मिल्लत जिल्द 1 सफ़ह 201)

शबीना यानी एक रात की तरावीह में पूरा क़ुरआन मजीद पढ़ना जिस तरह आजकल रिवाज है के कोई बैठा बातें कर रहा है, कुछ लोग लेटे हैं, कुछ लोग चाय पी रहे हैं, कुछ लोग मस्जिद से बाहर बीड़ी सिगरेट पीने की में मशगूल हैं, और जब जी चाहा तो एक आध रकअत में शामिल भी हो गए, इस तरह का शबीना नाजाइज़ है, हां अगर ये फ़िज़ूल में मशागिल ना हों और सब मुसल्लियान तरावीह की (20) बीसों रकअतों में शरीक रहें और दिल लगाकर क़ुरआन मजीद को सुनें और हाफ़िज़ साहब अकेले या चंद हाफ़िज़ मिलकर पूरा क़ुरआन मजीद पढ़ें तो ये जाइज़ है। (बहारे शरीअत हिस्सा 4, सफ़ह 37 & सामाने आखिरत सफ़ह 189)

दो रकअत तरावीह की नियत की क़अदा भूल गया 3 रकअत पढ़ कर बैठा और सजदा ए सहू किया तो नमाज़ नहीं हुई और तीनों रकअतों में जिस क़दर क़ुरआन पढ़ा गया उसका इआदा किया जाए, और अगर 4 रकअत पूरी कर ली मगर 2 रकअत पर क़अदा ना किया तो ये चारों दो ही रकअत के क़ाइम मुक़ाम शुमार होंगी और अगर दोनों क़अदे किए तो चारों रकअतें हो गईं। (फतावा रज़वियह जिल्द 3, सफ़ह 520)

लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी रज़वी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी

मुरादाबाद, यूपी भारत

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