गोरखपुर

इस होली पर लीजिए पर्यावरण एवं जल संरक्षण का संकल्प

हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका डॉ अनिता अग्रवाल ने की अपील
कहा, होलिका दहन एक धार्मिक अनुष्ठान, न डाले टॉयर और प्लास्टिक

गोरखपुर। हेरिटेज फाउंडेशन की संरक्षिका डॉ अनिता अग्रवाल कहती है कि होली रंगों का पावन त्योहार है। 17 मार्च को होलिका दहन और 19 मार्च को होली उल्लास के साथ मनाई जाएगी। लेकिन होली के इस उल्लास पर हमें पर्यावरण एवं जल संरक्षण का भी ख्याल रखना होगा। होलिका दहन एक धार्मिंक अुष्ठान है, इसलिए उसकी पवित्रता बनाए रखने के लिए कोई अशुद्धि मसलन, प्लास्टिक, पोलिथीन, टॉयर, जला हुआ मोबिल, पुराने ट्यूब सरीखे कोई भी उत्पाद न डाले। बल्कि नीम के सूखे पत्ते, गोबर के उपले-कंड़े और कम मात्रा में लकड़ियों का इस्तेमाल करें।
डॉ अनिता कहती है कि होलिका दहन के लिए ऐसे स्थान का इस्तेमाल करें जो स्थान खुला हो। सड़क पर होलिका दहन करने से सड़कों को काफी क्षति पहुंचती है। उनका कोलतार जल जाता है जिससे अनजाने में ही हम सड़कों को काफी क्षति पहुंचा देते हैं। होली किसी तरह की क्षति पहुंचाने का नहीं बल्कि उल्लास एवं खुशी बांटने का त्योहार है। सामाजिक समरसता का त्योहार है। हेरिटेज के मनीष चौबे कहते हैं कि प्लास्टिक, पोलिथीन, टॉयर आदि डालने से काफी मात्रा में निकलने वाली हानिकारक गैसे, मानव स्वास्थ्य के साथ पशु पक्षियों एवं ओजोन स्तर को भी हानि पहुंचाती है। होलिकोत्सव के लिए हमें हरे पेड़ों को काटने से भी बचना चाहिए।
सूखे रंगो और फूलों से खेले होली, पानी का कम करें इस्तेमाल
हेरिटेज वारियर्स मनीष चौबे कहते हैं कि होली के दिन भी हमें सूखे रंगों और फूलों की होली पर ज्यादा जोर देना चाहिए। रंग में पानी घोल कर खेलने से बचना चाहिए, क्योंकि रंग में रसायन न केवल त्वचा को क्षति पहुंचाता है बल्कि पर्यावरण को प्रदूषित भी करता है। रंग को शरीर और कपड़ों से छुड़ाने में भी काफी मात्रा में साफ पानी बर्बाद होता है। पानी का मोल अब किसी से छुपा नहीं है, घर घर पीने के पानी पर हर दिन 20 से 50 रुपये औसत खर्च किया जा रहा। होली पर गुब्बारे का इस्तेमाल न करें, इससे हादसा होना की आशंका बनी रहती है।

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