गोरखपुर

गाजी मियां का अकीदत से मनाया गया उर्स-ए-पाक

गोरखपुर। बहरामपुर बाले मियां के मैदान में बुधवार को हज़रत सैयद सालार मसूद गाजी मियां अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी की गई।

हाफ़िज़ खुर्शीद आलम ने कहा कि ग़ाजी मियां मानवता का संदेश देने के लिए बहराइच तशरीफ लाए। उस वक्त वहां ऊंच-नीच, जात-पात का बोल बाला था। आपने इसका विरोध किया। वहां के राजाओं ने आपसे बहराइच खाली करने को कहा। गाजी मियां ने कहा कि मैं यहां पर हुक़ूमत करने नहीं आया हूं। उसके बावजूद राजा नहीं मानें। राजाओं ने मिलकर हमला कर दिया। आपने बहुत बहादुरी से मुकाबला करते हुए शहादत का जाम पिया। अस्र मगरिब के दरमियान इस्लामी तारीख 14 रजब 424 हिजरी में आपकी रूह मुबारक ने इस जिस्म ख़ाक को छोड़कर अब़्दी ज़िन्दगी हासिल की। आप हमेशा इंसानों को एक नज़र से देखते थे। सभी से भलाई करते। दुनिया से जाने के बाद भी आपका फैज़ जारी है। आपका मजार शरीफ बहराइच में है। जहां पर ऊंच-नीच, जात-पात, मजहब की दीवार गिर जाती है। ग़ाजी मियां ऐसे सूफियों की संगत में अपना जीवन व्यतीत करते थे, जिनका संसार की लौकिक विधा की अपेक्षा अलौकिक विधा पर अधिक अधिकार था। इसके अतिरिक्त आप युद्ध कला विशेषकर तीरंदाजी में भी पूर्ण अधिकार रखते थे।

हाफ़िज़ गुलाम जिलानी ने हज़रत सैयद सालार मसूद ग़ाजी मियां अलैहिर्रहमां की ज़िन्दगी व खिदमात पर रौशनी डालते हुए कहा कि ग़ाजी मियां का जन्म 21 रजब 405 हिजरी को अजमेर में हुआ। आप मुसलमानों के चौथे ख़लीफा हज़रत सैयदना अली रदियल्लाहु अन्हु की बारहवीं पुश्त से हैं। गाजी मियां के वालिद का नाम हज़रत ग़ाजी सैयद साहू सालार था। मां का नाम सितर-ए-मोअल्ला था। चार साल चार माह की उम्र में आपकी बिस्मिल्लाह ख्वानी हुई। नौ साल की उम्र तक फिक्ह व तसव्वुफ की तालीम हासिल की। आप बहुत बड़े आलिम व वली थे। गाजी मियां बहुत मिलनसार थे। जब तंहाई में होते तो वुजू करते और इबादत-ए-इलाही में मश्गूल हो जाते।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। उर्स में मौलाना कुतुबुद्दीन, कारी कयामुद्दीन, सेराज अहमद, इलियास, बब्लू, कमरूद्दीन आदि मौजूद रहे।

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