प्रयागराज

आखिरी वक्त तक तरक्कीपसंद रहे अक़ील रिज़वी साहब

हिंदी हलकों में भी उन्हें गौर से सुना जाता था।

इलाहाबाद के साहित्य और संस्कृति पर उनका गहरा प्रभाव है।

उर्दू के नामचीन आलोचक प्रो.अकील रिज़वी की दूसरी पुण्यतिथि पर युवा सृजन संवाद ने डिजिटल मंच के माध्यम से ऑनलाइन कार्यक्रम करके उन्हें उनकी रचनाओं के माध्यम से याद किया।उर्दू के वरिष्ठ कथाकार असरार गांधी ने कहा कि वे आखिरी वक्त तक तरक्कीपसंद रहे।समसामयिक मुद्दों पर उनकी बारीक नज़र रहती थी।वे हमेशा दूसरों की राय को तवज्जो देते थे।पिछले दस वर्षों के संग साथ को याद करते हुए प्रो.संतोष भदौरिया ने कहा कि हिंदी और उर्दू वाले उनकी बातों को बड़े गौर से सुनते थे।इलाहाबाद की संस्कृति और साहित्य पर उन्होंने बहुत महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी।युवा लेखकों के लेखन और उनकी बातों से उनका गहरा लगाव था।उनके पाये का अब कोई अदीब उर्दू दुनिया में नहीं दिखता ।साझा संस्कृति को जीने और उसकी रवायत को आगे बढ़ाने वाले थे अकील रिज़वी साब।वरिष्ठ रंग निर्देशक प्रवीण शेखर कहा कि उनकी यादें बहुत हैं।उन्हें भारतीय और पाश्चात्य ज्ञान परंपरा की अद्भुत जानकारी थी।मैं उनका विद्यार्थी नहीं रह पर उनसे मिलना अपने नाना बाबा से मिलने जैसा होता था।उतनी आत्मीयता अब नहीं हासिल होती है।

उनकी शागिर्द ताहिरा परवीन ने उन्हें बहुत भावपूर्ण तरीके से याद किया।उन्होंने कहा कि हिंदी हलकों में भी उन्हें बहुत ध्यान से सुना जाता था।हाशिये के समाज के लिए वे हमेशा फिक्रमंद रहते थे।उनका मानना था कि कोई भी अदब वगैर नज़रिये के नहीं चल सकता है। वरिष्ठ ग़ज़लकार अशरफ अली बेग ने कहा कि भाषा की उन्हें बहुत गहरी जानकारी थी।इलाहाबाद की तरकीपसन्द तहरीक में उनका नाम हमेशा बहुत अदब से लिया जाता रहेगा।वरिष्ठ कथाकार नीलम शंकर ने कहा कि उनसे मिलना हमेशा कुछ सीखने जैसा होता था।बड़ा होना क्या होता है उनके व्यक्तित्व को देखकर जाना जा सकता है।उन्होंने हमेशा हम लोगों को हौसलाअफजाई की।साथी धीरेन्द्र धवल, आरती चिराग,मुनेंद्र,ने भी अपनी यादें साझा की।इसके अलावा अरविंद गुप्त, संजय पांडे, गुरपिंदर,अशोक श्रीवास्तव, राहुल कुमार, बृजेश कुमार,जे के पटेल ने भी अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

ऑनलाइन स्मृति सभा का संचालन डॉ. शमेंनाज़ शेख ने किया।

प्रस्तुति/प्रेषक
धीरेन्द्र

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