लखनऊ

युवा सृजन संवाद: “गांव मुझमें धंसा है, इसलिए मेरी कथाओं में गांव है” शिवमूर्ति

कथाओं में समृद्धि जीवन को शिद्दत से जीने से आती है: शिवमूर्ति

युवा सृजन संवाद की घर-गोष्ठी / 3 में लखनऊ से हिंदी कथा साहित्य के वरिष्ठ और संजीदा कथाकार शिवमूर्ति ने अपने जीवन और कथा विन्यास को लेकर बातचीत की।

उन्होंने अपने जीवन संघर्ष को जिस रूप में प्रस्तुत किया, वह श्रोताओं को अंदर तक झकझोर गया। शिवमूर्ति जी अपनी पहचान को ग्राम्य कथाकार के रूप में ही ज़िंदा रखना चाहते हैं। उनका कहना था कि मेरे भीतर गांव का पानी तालाब का पानी नहीं कुंए का जल है, जिसका स्रोत ऊपर से नहीं भीतर से है।

उन्होंने युवा रचनाकारों को किराए का लेखक बनने के बजाय जनता का लेखक, पीड़ित जनों का लेखक, लोक का लेखक, प्रताड़ित और उपेक्षित जनों का साथ खड़े रहने वाला लेखक बनने की बात की। अपने कथा पात्रों में उन्होंने स्त्री पात्रों की भूमिका को रेखांकित किया। यह बताया कि सवर्ण स्त्रियों का दायरा कथा में इसलिए कम है कि उनका सामाजिक दायरा भी कम है। अपनी कथा-यात्रा को उन्होंने स्वयं से जोड़कर समृद्ध किया है। उन्होंने अपने अगले अप्रकाशित उपन्यास को लेकर इशारा किया कि उसमें गांवों के विभिन्न रूप खासकर किसान जीवन के विविध आयाम दर्ज़ हैं।

घर-गोष्ठी / 3 के इस आयोजन का संयोजन एवं संचालन लेखक एवं संस्कृतिकर्मी संतोष भदौरिया ने किया। कार्यक्रम के आरंभ में भदौरिया जी ने कहा कि शिवमूर्ति जी लखनऊ जैसे महानगर में भले ही रहते हैं, लेकिन गांव उनसे छूटता नहीं। बार-बार गांव की और लौट आते हैं। इसलिए उनकी रचनाओं के केंद्र में गांव और किसान पूरी प्रमाणिकता के साथ उपस्थित हैं। शिवमूर्ति जी की कहानियां इतनी सशक्त हैं कि उनकी कई कहानियों का नाट्य रूपांतरण हो चुका है। उनका कथा साहित्य विभिन्न भाषाओं में अनूदित हुआ है। उनकी रचनाओं की परिधि देश-देशांतर तक है। उनकी कहानियों में दृश्यों और बिंबों की भरमार है। अनेक सम्मानों सहित उन्हें अभी हाल ही में श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको जैसा बड़ा सम्मान प्राप्त हुआ है।ग़ोष्ठी में सभी वरिष्ठ एवं युवा साथियों ने अपने प्रश्न और जिज्ञासाएं रखीं जिनका विस्तार से शिवमूर्ति जी ने जवाब दिया।जिससे ग़ोष्ठी अंत तक काफी विचारोत्तेजक रही।

इस घर – ग़ोष्ठी में हिंदी के वरिष्ठ कवि हरिश्चंद पांडेय, वरिष्ठ आलोचक, संस्कृतिकर्मी रामजी राय, वरिष्ठ उर्दू कथाकार असरार गांधी, वरिष्ठ कवि-कथाकार हरिंद्र प्रसाद, कवि अशरफ अली बेग, वरिष्ठ कवि अशोक श्रीवास्तव, वरिष्ठ संस्कृतिकर्मी मीना राय, युवा रंगकर्मी प्रवीण शेखर, युवा लेखिका डॉ. सालेहा सिद्दीकी,युवा आलोचक डॉ. मोतीलाल, संस्कृतिकर्मी सुधांशु मालवीय, रश्मि मालवीय, श्रीपाल,बृजेश कुमार, आरती चिराग़, डॉ. धीरेंद्र धवल, रंजीत राही, अतुल, शिवम, जुगेश मुकेश गुप्ता, राहुल कुमार, कुंजबिहारी आदि युवा साथी मौजूद रहें।

प्रस्तुति/प्रेषक:
धीरेंद्र धवल

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