सामाजिक

दहेज़ एक लानत

लेखक: अहमद हसन स’अदी,अल बरकात कॉलेज अलीगढ़

दहेज आजकल (मौजूदा) जमाने में बुरा समझे जाने वाली चीजों में से एक बहुत ही घटिया चीज है। जिसने ना जाने कितनी लड़कियों की जिंदगी को उजाड़ कर रख दी है। जिसकी वजह से आए दिन बच्चियों की खुदकुशी की खबरें आ रहे हैं। और बहुत सी बच्चियां जवानी के वक्त में भी अपने बूढ़े मां बाप के घर बैठने पर मजबूर हैं। अगर हम मज़हब ए इस्लाम की तालीमात से दहेज का जायज़ा लें तो मालूम होगा कि इस्लाम से दूर-दूर तक दहेज़ का कोई रिश्ता नहीं है। लेकिन उसके बावजूद हमारे मुस्लिम समाज में यह लानत तेज़ी से (आम) बढ़ती जा रही है हर आदमी अपनी शादी में लड़की के घरवालों से दहेज़ के नाम पर मोटी रकम और हर तरह के सामान का मांग करता है। यहां तक कि आपने देखा होगा कि बहुत से लड़के वाले तो अपनी लालच और बेईमानी में इस कदर अंधे हो जाते हैं कि उनको अपनी ख्वाहिश के मुताबिक दहेज का इंतजाम ना होने की वजह से बारात वापस ले जाने में भी हिचकिचाहट शर्म) महसूस नहीं करते।
दहेज यह हमारे समाज में एक बड़ी बीमारी है। जिससे अपने पूरे समाज को उससे बचाना है। और इसका इलाज करना हम में से हर एक की जिम्मेदारी है।
हम सबको चाहिए कि हम अपने समाज को दहेज की लानत से बचाने के लिए आगे बढ़कर समाज में फैली इस (गंदगी) बुराई को जड़ से उखाड़ फेंके। ताकि हमारा समाज़ गंदी बुरी चीज़ से पाक हो जाए|…

अल्लाह तआला हमारे मुस्लिम समाज को इस बुराई से महफूज़ फरमाए

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