संपादकीय सामाजिक

… और तू कहता है दिवाली मनाऊं तेरे संग ?

आसाम में मेरे भाई की मुर्दा लाश को पैरों तले रौदा गया, यूपी में चूड़ी बेचने वाले मेरे भाई को आईडी चेक करके मारा गया, त्रिपुरा में मेरी धार्मिक स्थलों और पूजा पाठ के लिए बनाए गए मस्जिदों में तोड़फोड़ की गई, मेरे धार्मिक ग्रंथ पवित्र कुरआन को जलाया गया, मेरे भाइयों की दुकानें लूटी गई, मेरे भाइयों के घरों में आग लगाई गई, मेरे भाइयों को खुलेआम तलवारों से काटा गया, 2 साल पहले देश के सबसे बड़े न्यायालय ने मेरी मस्जिद मुझसे छीन कर बदले में भीख दे दी, हमेशा मुझे इस देश का दूसरा नागरिक ही समझा गया, इस देश को आज़ाद कराने में मेरे पूर्वजों ने अपना लहू बहाया मगर मुझे अपनी नागरिकता साबित करनी होगी, मेरे धार्मिक गुरुओं को बेबुनियाद आरोपों में निर्दोष होने के बावजूद जेलों में डाला गया, मेरी बहनों की इज्जत से खिलवाड़ किया गया, हां… मुझे बात-बात पर आतंकवादी बताया गया, हां… देश में होने वाले हर कांड का जिम्मेदार मुझे बताया गया, हां… देश में बढ़ती महंगाई का जिम्मेदार मुझे ठहराया गया, हां… देश में बढ़ती बेरोजगारी का कारण मुझे बताया गया, हां… मैं ही वह हूॅं जिसकी मां-बहन को प्रदेश का मुखिया गालियां देता था, हां… मैं ही वह हूॅं जिसकी भावनाओं को हर दिन आहत किया जाता है, हां… मैं ही वह हूॅं जिसे टीवी पर बैठकर रोजाना बुरा भला कहा जाता है!!! फिर भी मैं दिवाली मनाऊं तेरे संग? बता !!! पिया बता ! कैसे ???

लेखक: मोहम्मद शोऐब रज़ा निज़ामी फ़ैज़ी
प्रधान संपादक: हमारी आवाज़ , गोरखपुर

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