गोरखपुर। बौलिया रेलवे कॉलोनी में जलसा-ए-ईद मीलादुन्नबी हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हाफ़िज़ सद्दाम हुसैन ने की। नात-ए-पाक हाफ़िज़ एमादुद्दीन ने पेश की।
मुख्य वक्ता हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने कहा कि दीन का इल्म सीखना हर मुसलमान मर्द और औरत पर फ़र्ज़ है। वह इल्म जो हमें हलाल और हराम में फ़र्क़ बताए और जो अल्लाह के फरमान के खिलाफ़ न हो वो इल्म ही सही मायने में इल्म है। दीन-ए-इस्लाम में इल्म की अहमियत का अंदाज़ा क़ुरआन-ए-पाक की पहली आयत इक़रा से लगाया जा सकता है। बिना इल्म के इंसान न दुनिया संवार सकता है और न ही आख़िरत। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इल्म की अहमियत पर ज़ोर देते हुए फ़रमाया है कि “इल्म हासिल करो चाहे इसके लिए तुम्हे चीन ही क्यूँ न जाना पड़े”। इल्म से ही मुल्क व समाज की तस्वीर बदलेगी। जिस इंसान ने इल्म हासिल किया उसके सिर पर कामयाबी और बुलंदी का ताज होता है।
वहीं मंगलवार को हांसूपुर में भी जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी हुआ। संचालन हाफ़िज़ अज़ीम नूरी ने किया। मुख्य वक्ता मुफ़्ती मोहम्मद शमीम अमजदी ने कहा पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने जिस समाज का निर्माण किया उसमें बड़ों की प्रतिष्ठा, छोटे से प्रेम, कमजोरों के प्रति सहानुभूति, बच्चों से प्यार, औरतों का सम्मान, गुलामों को बराबरी, मजदूरों के साथ उचित व्यवहार, कानून के प्रति जागरुकता और अन्याय के प्रति घृणा का वातावरण उत्पन्न हुआ। इस तरह पैग़ंबर-ए-आज़म ने ऐसे आधुनिक इस्लामी समाज का निर्माण किया और एक ऐसे नमूने की शासन-व्यवस्था की आधारशिला रखी, जिसके आधार पर आज बड़ी आसानी से आधुनिक युग का निर्माण किया जा सकता है।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति, तरक्की व भाईचारे की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। जलसे में मौलाना सरफराज़ अहमद, मौलाना गुलाम वारिस, हाफ़िज़ मो. अंसार, इमरान अली, सलमान अली, फैसल, अब्दुल्लाह, अकबर अली, नदीम फैज़ी, मो. हामिद, मो. साहिल, गोलू, जावेद, मो. कलीम आदि ने शिरकत की।