गोरखपुर। गुलहरिया जामा मस्जिद के निकट जलसा-ए-दस्तारबंदी कार्यक्रम हुआ। मौलाना शेर मोहम्मद अमजदी की दस्तारबंदी मुख्य अतिथियों द्वारा की गई। छोटे बच्चे मोहम्मद अयान की बिस्मिल्लाह ख़्वानी भी हुई। अकीदतमंदों ने मौलाना व बच्चे को दुआओं व नज़रानों से नवाज़ा। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से जलसे का आगाज़ हाफ़िज़ व कारी नईमुद्दीन ने किया। नात-ए-पाक हाफ़िज़ सिराजुद्दीन ने पेश की।
अध्यक्षता करते हुए कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम का इल्म हासिल करना अफज़ल इबादत है। दीन-ए-इस्लाम का एक आलिमे रब्बानी हज़ार आबिदों से अफज़ल, आला और बेहतर है। आबिदों पर उलेमा की फजीलत ऐसे है जिस तरह सितारों के झुरमुट में चौदहवीं का चांद चमक रहा हो। पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम का हुक्म है कि मेरे उम्मती इस हाल में सुबह कर कि तू आलिम हो, अगर तेरे बस में आलिम होना न हो तो फिर मैं तुझे ताकीद करता हूं कि तू तालिबे इल्म जरूर हो और तू आलिम व तालिबे इल्म न हो तो फिर इन दोनों में से किसी एक की बात सुनने वाला जरूर बन। अगर तू इनका सुनने वाला भी न हो तो इनसे मोहब्बत करने वाला जरूर हो जा।
मुख्य अतिथि मौलाना शहाबुद्दीन ने सभी को क़ुरआन-ए-पाक पढ़ने की दावत देते हुए कहा कि दीन-ए-इस्लाम व क़ुरआन-ए-पाक के अध्ययन से, पैगंबर-ए-आज़म के अख़्लाक और उनके सच्चे वारिस सहाबा-ए-किराम, अहले बैत, औलिया, उलेमा के जीवन को समझें। अगर पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम के दिए हुए नियमों का पालन हो तो पूरी दुनिया भ्रष्टाचार, औरतों की असुरक्षा, भुखमरी और इस प्रकार के रोगों से और सभी तरह की नास्तिकता से और मजहब के नाम पर हिंसा से सुरक्षित हो सकती है।
गुलहरिया जामा मस्जिद के इमाम व खतीब मौलाना शेर मोहम्मद ने कहा कि हज़रत आदम अलैहिस्सलाम से लेकर आखिरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम तक जितने भी पैगंबर इस दुनिया में आये, वह सब इंसानों को तौहीद, एकता और इंसानियत की दावत देने के लिए आए। आखिरी पैगंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम पूरी दुनिया के लिए रहमत बनकर आए। हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने इंसानों को उसके हकीकी मालिक अल्लाह से मिलाया। पैगंबर-ए-आज़म पर नाज़िल होने वाली किताब क़ुरआन-ए-पाक भी एक विशेष क़ौम व मिल्लत के लिए नहीं बल्कि उसमें सभी इंसानों के लिए अल्लाह का संदेश व हिदायत है।