- काश ! फारुख ने मान ली होती पिता की बात
- अगर पिता की बात मान ली होती तो कम से कम बेटा बच जाता
- हादसे में समाप्त हो गया पूरा परिवार
दोपहर के करीब तीन बज रहे थे जब खलील के मोबाइल की घंटी बजी और अचानक घर में चीख-पुकार मच गई। बेटे, बहू व नातिन की मौत की खबर बताते बताते वह बदहवास हो गए। शोर सुनकर पहुंचे आसपास के लोगों ने मुश्किल से उन्हें संभाला।
होश में आने पर वह बेटे की जिद के आगे सबकुछ हार जाने की बात कहते-कहते फफक पड़े। फारूक की मौत के बाद घर में सन्नाटा पसरा हुआ है। घर के लोग सदमे में हैं।
क्षेत्र के गांव लाला छपरा निवासी 70 वर्षीय खलील के पांच बेटों में फारूक चौथे नंबर के थे। छोटा भाई शमीम घर पर है 10वीं की पढ़ाई करता है। बड़े तीनों भाइयों का मुंबई में अपना रोजगार हैं। वह वहीं हैं। फारूक भी सउदी में टेलरिग का काम करते थे। दो माह पहले घर आए थे। तीन दिन पहले पत्नी नगमा ने पैर में जोर का दर्द होने की जानकारी दी। इलाज के लिए वह पत्नी को रामकोला ले गए। मगर दवा से राहत नहीं मिली। मंगलवार रात को नगमा की तकलीफ और बढ़ गई तो फारूक ने अगले दिन गोरखपुर दिखाने की बात कही। सुबह बाइक से फारूक जब गोरखपुर के लिए निकलने लगे तो बाइक पर सवार पांच साल के उसके बेटे फैजल तथा आठ साल की बेटी नूरजहां को बैठा देख बेटे को समझाया और बच्चों को साथ न ले जाने की बात कही। पर फारूक ने उनकी नहीं सुनी और पत्नी बच्चों संग बाइक से गोरखपुर निकल गया। गोरखपुर जिले के पिपराइच के जंगल सुभान अली गांव के पास बेटे, बहू व नातिन की सड़क हादसे में मौत से सदमे में आए पिता खलील, मां कमरूननिशा बदहावाश पड़े हैं।
नहीं रुक रहे फैज़ल के आंसू
फैज़ल की आंख के सामने ही उसके पिता, मां व बड़ी बहन मौत के मुंह में समा गए। एक झटके में ही उसकी दुनिया उजड़ गई। डाक्टरों ने प्राथमिक इलाज के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी। सगे-संबंधी गांव के लोग पुलिस के पास रहे फैज़ल को लेकर घर आए। उदास फैज़ल की आंख के आंसू नहीं थम रहे हैं।