✍🏻सिद्दीक़ी मुहममद ऊवैस, नई दिल्ली
हम जानते हैं कि पिछले वर्ष कुछ हिंदुत्ववादी समहों द्वारा नागरिकता क़ानन के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध प्रदर्शनों के दौरान दिल्ली के कुछ इलाक़ों में इस प्रकार नफ़रत के आधार पर हिंसा फैलाई गई कि इसकी चपेट में आकर सैंकड़ों परिवार बर्बादी का शिकार हुए । उस समय के कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए थे, जिनमें से एक वीडियो भाजपा नेता कपिल मिश्रा का था, उस वीडियो में कपिल मिश्रा दिल्ली पलिस के आला अधिकारी और जवानों के सामने खड़े भड़काऊ भाषण देते साफ़ नज़र आ रहे थे, बावजद इसके दिल्ली पलिस ख़ामोश रही ।
दिल्ली पलिस नागरिकता क़ानन के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शनों में शामिल होने वाले जामिया
मिल्लिया के छात्रों और कई बड़े सामाजिक कार्यकर्ताओ को न सिर्फ़ गिरफ़्तार करती है,
बल्कि उन पर राजद्रोह और आतंकवाद तक के मक़दमें थोप दिए जाते हैं । दिल्ली के माहौल में एक बार फिर नफ़रत का ज़हर घोलने की कोशिश की गई, 8 अगस्त को दिल्ली के जंतर-मंतर पर बड़ी संख्या में हिंदुत्ववादियों द्वारा मसुलमानों के ख़िलाफ़ जमकर भड़काऊ नारे लगाए जाते हैं, लेकिन वायरल वीडियो में नारे लगाते हुए नज़र आ रहे लोगों में से किसी एक पर भी राजद्रोह या देशद्रोह का आरोप तक नहीं लगता ।
एक ओर जहां न्याय के लिए आवाज़ उठाने एवं अपने संवैधानिक अधिकारों की मांग करने वालों पर देश से ग़द्दारी और आतंकवाद तक की धाराएं लगा दी जाती हैं, जिसमें ज़मानत मिलना दर्लभ हो जाता है, लेकिन इसके विपरीत जब हिंदुत्ववादियों द्वारा खलुेआम माहौल को ख़राब करने की कोशिश की जाती है तब हमारा प्रशासन अंधा, गुंगा, बहरा हो जाता है । सवाल यह है कि इतने बड़े लोकतांत्रिक देश में यह भेदभाव आख़िर क्यों ? वास्तविकता यह है कि संघ के कई छोटे-बड़े संगठन देश में सांप्रदायिकता, जातिवाद और धर्म के आधार पर लोगों को बांट रहे हैं, जिसके नतीजे में आज जंतर-मंतर जैसी घटनाए, हिंसा और मॉब लिंचिंग की घटनाए आम होती जा रही हैं । ऐसे में सबसे बड़ा सवाल प्रशासन और क़ानन व्यवस्था पर उठता है ।
सवाल उठता है कि 8 अगस्त के दिन जब पलिस प्रशासन जंतर-मंतर पर मौजूद था तो
भड़काऊ नारों को रोकने के लिए तत्काल कोई ठोस क़दम क्यों नहीं उठाया गया ? इन नारों को
रोकने की कोशिश क्यों नहीं कि गई ? समाचारों के अनसार इस कार्यक्रम के मुख्य आयोजक
अश्विनी उपाध्याय की पहचान भाजपा नेता के तौर पर हुई है और उन्हीं के नेतत्व में यह कार्यक्रम का आयोजन किया गया था ।
अब बात आती है कार्रवाई की, घटना के दो दिन बाद सोशल मीडिया पर ख़ब किरकिरी
होने के बाद दिल्ली पलिस नींद से जागती है और अश्विनी उपाध्याय समेत पांच लोगों को गिरफ़्तार किया जाता है । हालांकि दिल्ली की एक अदालत ने जंतर-मंतर पर लगाए गए मुस्लिम विरोधी नारों के सिलसिले में दिल्ली पुलिस की जांच पर सवाल उठाते हुए कड़ी फटकार लगाई और 13 अगस्त को अन्य आरोपियों को ज़मानत देने से इन्कार कर दिया था । अदालत ने आरोपियों द्वारा 8 अगस्त को जंतर-मंतर पर हुई नारेबाज़ी पर कहा था कि इस देश के नागरिक से अलोकतांत्रिक रवैये की अपेक्षा नहीं की जा सकती, लेकिन घटना के मुख्य
आरोपी अश्विनी उपाध्याय को अगले ही दिन ज़मानत मिल जाती है ।
इसके विपरीत देखा जाए तो नागरिकता क़ानन का विरोध करने वाले ख़ालिद सैफ़ी, उमर
ख़ालिद जैसे कई लोगों को पिछले एक साल से जेलों में रखा गया है और राजद्रोह जैसी संगीन धाराओं के तहत उन पर मुक़दमें चलाए जा रहे हैं । आख़िर यह देश को किस दिशा में ले जाने का प्रयास है ?