धार्मिक सामाजिक

मुस्लिम लड़कियों की गैरमुस्लिमों से शादी: अंजाम ज़रा सोच मेरे यार

आप ने कुछ वक्त पहले कोई ऐसी वीडियो देखी होगी या कोई मैसेज पढ़ा होगा जिसमें हिन्दू संगठन के लोग अपने नौजवानों से अपील कर रहे थे कि वे मुस्लिम लड़कियों को अपने झूंटे प्यार के जाल में फसाएं।

हमने फेक समझ कर या किसी भी वजह से उसे नजरअंदाज कर दिया था लेकिन सच में मामला बहुत गंभीर है। यह मैसेज या वीडियो सच था और इसके नतीजे भी सामने आने लगे हैं। “हिन्दू संगठनों से जुड़े युवा अपने छुपे हुए मंसूबों के तहत घर से बाहर काम करने वाली और कालेज व हॉस्टल की लड़कियो को प्यार के जाल मे लगातार फसा रहे हैं।” इस ताल्लुक़ से एक मैसेज भी वायरल हो रहा है जिसमें मैरिज रज़िस्ट्रार के पास बड़ी तादाद मे मुस्लिम लड़कियों की हिन्दू लड़कों से शादी और मज़हब तब्दील करने के कागज़ात दिखाए जा रहे हैं। उस मैसेज में उलेमाओं से भी अपील की जा रही है कि वे जुमे की तकरीर में इस ताल्लुक़ से बयान करें।
याद रहे सारी जिम्मेदारी उलेमाओं की ही नहीं है। उलेमा हज़रात बरसों से तकरीरों और किताबों के जरिए आवाम को समझाते आ रहे हैं कि क्या गलत है और क्या सही। क्या जाईज़ है और क्या न जाईज़। लड़के और लड़की की परवरिश कैसे करनी है। दीनी तालीम कितनी ज़रूरी है। क़ुरआन और हदीस पढ़ना कितना ज़रूरी है। सुन्नतों पर अमल करना कितना ज़रूरी है। बेटी पर कब से पर्दा वाजिब है। घर का माहौल कैसा रखना है वगैरा वगैरा। अब अगर आवाम ही न समझे तो किया ही क्या जा सकता है। आज कल के माँ-बाप अपने बच्चों की परवरिश दीन को किनारे रख कर करते हैं। इस्लाम छोड़ने वाली इन लड़कियों के माँ-बाप बहुत बड़े गुनहगार हैं, जिस घर में माँ-बाप दुनिया की कामयाबी को बड़ा समझेंगे और आखिरत को छोटा तो उस घर में इस्लाम का जनाज़ा निकालने वाले ही पैदा होंगे। जिस घर में दुनिया के इल्म को बड़ा और दीन के इल्म को छोटा समझा जायगा, उस घर में हाफि़ज़, क़ारी या आलिम नही नाचने गाने वाले ही पैदा होंगे। अगर माँ-बाप अपने नबी ﷺ के तरीको को छोड़ कर यहूदो – नसारा के तरीको को तरजीह देंगे तो उन की नस्लो मे दीन को मिटाने वाले ही पैदा होंगे। आज कल की लड़कियां पर्दे को कै़दखा़ना समझती है, उनकी माँ उन्हें यह नहीं समझाती कि यह पर्दा तो औरत की ज़ीनत है, इस्लाम की शहज़दीयो के लिए इनाम है। वे न खुद समझती हैं और न ही अपनी लड़कियों को यह समझाती हैं कि हमारे प्यारे रब ने हमें पर्दे मे रहने का हुक्म दिया, हमारे जिस्म का भी पर्दा है, हमारे लिबास का भी पर्दा है, हमारी आवाज़ का भी पर्दा है और यहां तक कि हमारे नाम तक का पर्दा है।
ज़रा वक्त निकाल कर पढ़े उन बुजुर्गों की जिंदगी जिनकी माँ की गौद उनका पहला मदरसा थी। अगर माँ-बाप अपने घर का महोंल तब्दील करके दीनी माहौल बनाएंगे तो लड़कियां खुद से दीन छोड़ने की बात तो दूर अपनी जान तक दे देंगी लेकिन दीन नहीं छोड़ेंगी। चुंकी वायरल मैसेज में उलेमाओं से गुज़ारिश की गई है इसलिए अगर यह मैसेज भी उलेमाओं तक पहुंचता है तो हम भी गुज़ारिश करते हैं कि उलेमा हज़रात अवाम के और खास तौर पर लड़कियों के ईमान की हिफाजत के लिए एक बार फिर इन बुरे हालतों पर कुछ बयान फार्मा दें क्योंकि इस सोई हुई कौम को फिर से जागाना ज़रूरी। वर्ना कौम की बेटीयों का अंजाम कुछ इस विडियो की तरह होगा।

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