मस्जिदों व घरों में जारी ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’
गोरखपुर। सोमवार ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ महफिलों के नाम रहा। उलेमा-ए-किराम ने दीन-ए-इस्लाम, शहादत और कर्बला के बाबत विस्तार से बयान किया। 6वीं मुहर्रम को करीब एक दर्जन से अधिक मस्जिदों व घरों में ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ महफिलों का दौर जारी रहा। कर्बला का वाकया सुनकर अकीदतमंद यादे हुसैन के अश्कों में डूब गए।
बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन क़ादरी ने कहा कि कर्बला के मैदान में हज़रत फातिमा ज़हरा के दुलारे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन जैसे ही फर्शे ज़मीन पर आये कायनात का सीना दहल गया। इमामे हुसैन को कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान पर दीन-ए-इस्लाम की हिफ़ाजत के लिए तीन दिन व रात भूखा प्यासा रहना पड़ा। अपने भतीजे हज़रत कासिम की लाश उठानी पड़ी। हज़रत जैनब के लाल का गम बर्दाश्त करना पड़ा। छः माह के नन्हें हज़रत अली असगर की सूखी जुबान देखनी पड़ी। हज़रत अली अकबर की जवानी को खाक व खून में देखना पड़ा। हज़रत अब्बास अलमबरदार के कटे बाजू देखने पड़े, फिर भी हज़रत इमाम हुसैन ने दीन-ए-इस्लाम को बुलंद करने के लिए सब्र का दामन नहीं छोड़ा। इमाम हुसैन कल भी ज़िन्दा थे, आज भी ज़िन्दा हैं और सुबह कयामत तक ज़िन्दा रहेंगे।
ग़ाजी मस्जिद ग़ाजी रौजा में मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ़्ती-ए-शहर) ने कहा कि कर्बला के 72 शहीदों ने जो बेमिसाल काम किया, उसकी मिसाल दुनिया में नहीं मिलती है। 9 मुहर्रम सन् 61 हिजरी शाम के समय इब्ने-साद ने अपने साथियों को हज़रत इमाम हुसैन के काफिले पर हमला करने का हुक्म दिया। आशूरा मुहर्रम की रात खत्म हुई और 10वीं मुहर्रम सन् 61 हिजरी की कयामत नुमा सुबह नमूदार हुई। इमाम हुसैन के अहले बैत व जांनिसार एक-एक कर शहीद हो गए और दीन-ए-इस्लाम का परचम बुलंद कर गए। हज़रत इमाम जैनुल आबिदीन, हज़रत उमर बिन हसन, हज़रत मोहम्मद बिन उमर बिन अली और दूसरे कम उम्र साहबजादे कैदी बनाए गए। हज़रत सकीना, हज़रत जैनब हज़रत इमाम हुसैन की सगी बहन व पत्नी हज़रत शहरबानो व दूसरे अहले बैत हज़रात की बीवियां भी कैदी बनायी गईं। इन पर बहुत जुल्म किया गया लेकिन सभी ने सब्र का दामन थामें रखा।
इमामबाड़ा पुराना गोरखपुर गोरखनाथ में मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि इमाम हुसैन के साथ मक्का शरीफ से इराक की जानिब सफर करने वालों में आपके तीन पुत्र 22 वर्षीय हज़रत अली औसत (इमाम जैनुल आबेदीन), 18 वर्षीय हज़रत अली अकबर, 6 माह के हज़रत अली असगर शामिल थे। इमाम हुसैन के काफिले में कुल 91 लोग थे। जिसमें 19 अहले बैते किराम (पैगंबर-ए-इस्लाम के घर वाले) और अन्य 72 जांनिसार थे। इमाम हुसैन की सात वर्षीय बहन हज़रत सकीना भी साथ में थीं। इमाम हुसैन की दो बीवियां हज़रत शहरबानो व हज़रत रुबाब बिन्त इमरउल-कैस भी साथ थीं।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रज़वी ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि अपनी औलाद को तीन बातें सिखाओ। अपने पैगंबर की उल्फत व मुहब्बत। अहले बैत (पैगंबर के घर वाले) की उल्फत व मुहब्बत। कुरआने करीम की किरात। जब तक मुसलमानें के हाथों में क़ुरआन और अहले बैत का दामन रहा वह कभी गुमराह और रुसवा नहीं हुए बल्कि हमेशा फतह उनके कदम चूमती रही। लिहाजा आज भी अगर हम क़ुरआन व अहले बैत से ताल्लुक जोड़ ले तो कामयाबी हमारे कदम चूमेगी।
शाही मस्जिद बसंतपुर सराय में मुफ़्ती मो. शमीम अमज़दी ने कहा कि पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि जिसने मेरे अहले बैत से बुग्ज (जलन) रखा अल्लाह उसको दोजख में डालेगा। एक जगह इरशाद फरमाया जो लोग हौज-ए-कौसर पर पहले आयेंगे वह मेरे अहले बैत होंगे। पैगंबर-ए-आज़म ने इरशाद फरमाया कि अगर तुम हिदायत चाहते हो और गुमराही और जलालत से अपने आपको दूर रखना चाहते हो तो अहले बैत का दामन थाम लो।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर, ज़ोहरा मस्जिद मौलवी चक बड़गो, सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर, मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर, जामा मस्जिद रसूलपुर, अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद हुमायूंपुर उत्तरी, हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो, मकतब इस्लामियात चिंगी शहीद इमामबाड़ा तुर्कमानपुर आदि में भी ‘जिक्रे शहीद-ए-कर्बला’ महफिल हुई। नात व मनकबत पेश की गई। शीरीनी बांटी गई।