गोरखपुर

उलेमा व बच्चों ने मिलकर अमीरुल मोमिनीन हज़रत उमर को किया याद

गोरखपुर। मुसलमानों के दूसरे ख़लीफा अमीरुल मोमिनीन हज़रत सैयदना उमर फ़ारुक़े आज़म रदियल्लाहु अन्हु के शहादत दिवस पर क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी का सिलसिला जारी है।

मंगलवार को सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफ़रा बाज़ार में उलेमा व बच्चों की महफिल सजी। फातिहा ख़्वानी के जरिए हज़रत उमर की बारगाह में अकीदत का नज़राना पेश किया गया। मस्जिद के इमाम हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि हज़रत सैयदना उमर का जन्म मक्का में हुआ था। आप कुरैश ख़ानदान से थे। अज्ञानता के दिनों में ही लिखना पढ़ना सीख लिया था। इनका क़द बहुत ऊंचा, रौबदार चेहरा और गठीला शरीर था। हज़रत उमर का पूरे मक्का में बड़ा दबदबा था। हज़रत उमर मक्का में एक समृद्घ परिवार से थे, बहुत बहादुर तथा दिलेर व्यक्ति थे। हज़रत उमर ख़ुलफा-ए-राशिदीन में सबसे सफल ख़लीफा साबित हुए। मुसलमान हज़रत उमर को फ़ारूक़े आज़म तथा अमीरुल मोमिनीन भी कहते हैं। 1 मुहर्रम 24 हिजरी को आपकी शहादत हुई। पैग़ंबर-ए-आज़म ने आपकी ज़िन्दगी में ही जन्नती होने की खुशख़बरी दी।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर अमनो सलामती की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। महफिल में हाफ़िज़ अलकमा, मौलाना नूरानी, हाफ़िज़ एमादुद्दीन, अजमत अली, आसिफ रज़ा, मो. जैद, मो. रुशान, हाफ़िज़ आमिर हुसैन निज़ामी आदि ने शिरकत की।

वहीं चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर में हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी ने क़ुरआन ख़्वानी व फातिहा ख़्वानी की। हज़रत सैयदना उमर की शान बयान करते हुए कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म ने एक शाम काबे के पास जाकर अल्लाह से दुआ की कि या अल्लाह उमर बिन खत्ताब को या अबू जहल बिन हिशाम दोनों में से जो तुझको प्रिय हो हिदायत दे। यह दुआ हज़रत सैयदना उमर के हक़ में क़बूल हुई। हज़रत सैयदना उमर इस्लाम में दाखिल हो गये। मुसलमानों खुशी की लहर दौड़ गई। इस्लाम लाने पर हज़रत सैयदना उमर ने ऐलान किया कि अब सब मिल कर काबे में नमाज़ पढ़ेंगे। अंत में सलातो सलाम पढ़कर खुशहाली की दुआ मांगी गई।

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