गोरखपुर

दर्स का तीसरा दिन: क़ुर्बानी के गोश्त पर ग़रीबों का भी हक है: हाफ़िज़ आफताब

गोरखपुर। ईद-उल-अज़हा में कुछ दिन बाकी हैं। तैयारियां जारी हैं। इलाहीबाग, रसूलपुर, जाहिदाबाद, खूनीपुर में क़ुर्बानी के बक़रों का बाज़ार सज रहा है। लोग अपनी हैसियत के हिसाब से बक़रा खरीद रहे हैं। बाज़ार में कई नस्ल, रंग, कद काठी के बक़रे बिक रहे हैं। बड़े जानवर में हिस्सा लेने की प्रक्रिया भी शुरु हो चुकी है।

शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में क़ुर्बानी पर चल रहे दर्स (व्याख्यान) के तीसरे दिन गुरुवार को हाफ़िज़ आफताब ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में जानवरों की क़ुर्बानी देने के पीछे एक अहम मकसद है। अल्लाह दिलों के हाल से वाक़िफ है। ऐसे में अल्लाह हर शख्स की नीयत को समझता है। जब बंदा अल्लाह का हुक्म मानकर महज अल्लाह की रज़ा के लिए क़ुर्बानी करता है तो उसे अल्लाह की रजा हासिल होती है। बावजूद इसके अगर कोई शख्स क़ुर्बानी महज दिखावे के तौर पर करता है तो अल्लाह उसकी क़ुर्बानी कुबूल नहीं करता। क़ुर्बानी का जानवर कयामत के दिन अपने सींग, बाल और खुरों के साथ आयेगा और क़ुर्बानी कराने वाले को फायदा पहुंचायेगा। क़ुर्बानी का खून ज़मीन पर गिरने से पहले अल्लाह के नज़दीक वह मकाम-ए-कुबूलियत में पहुंच जाता है। लिहाजा क़ुर्बानी अच्छी नीयत के साथ अल्लाह की रज़ा पाने की गर्ज से करें।

तंजीम दावत-उस-सुन्नाह के सदर कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने अपील किया है कि चमड़े का दाम कम होने की वजह से मदरसे वालों को चमड़े के साथ अच्छी रक़म भी दी जाए, ताकि मदरसे का निज़ाम बेहतरीन तरीके से सालभर चलता रहे। चमड़े को दफ़नाना या किसी अन्य तरीके से बर्बाद करना माल की बर्बादी है। जो शरीअत की नज़र से जायज़ नहीं है। क़ुर्बानी के गोश्त के तीन हिस्से कर लें। एक हिस्सा ग़रीब के लिए, एक हिस्सा दोस्त अहबाब और एक अपने घर वालों के लिए रख छोड़ें। क़ुर्बानी के गोश्त पर ग़रीबों का भी हक है। अगर घर के लोग ज्यादा हों तो सब गोश्त रख भी सकते हैं और गरीबों को दे भी सकते हैं। लेकिन ग़रीबों में बांटना ही बेहतर है। अगर जानवर में कई लोग शरीक हों तो सारा गोश्त तौल कर बांटा जाए, अंदाज़े से नहीं। अगर किसी को ज्यादा गोश्त चला गया तो गुनाहगार होंगे। क़ुर्बानी की खाल सदका कर दें या किसी दीनी मदरसें को दे दें।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। दर्स में बशीर खान, मो. इरफ़ान, मो. फरीद,
हाजी मो. यूनुस, मो. अफ़ज़ल,
इकराम अली आदि मौजूद रहे।

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