क़ज़ाये उमरी की नमाज़ का मतलब होता है जो हमारी पहले की नमाज़ें छूटी हुई हैं उनको अदा करना, उसके लिए सबसे पहले कितनी नमाज़ें छूटी हुई हैं उनका हिसाब लगा लें और एक तरफ से पढ़ते जाएं
- क़ज़ा नमाज़ों को अदा करने के कुछ मसाइल
- सबसे पहले हिसाब लगा लें कि कितनी नमाज़ें क़ज़ा हैं, बल्कि थोड़ा ज्यादा ही रहे पर कम न हो
- आगर याद न हो कि कब से क़ज़ा है तो लड़का 12 से 15 साल के दरमियान बालिग़ होता है और लड़की 9 से 12 साल के दरमियान, इसी हिसाब से अंदाज़ लगा लें
- जितनी नमाज़ें पढ़ते जाएं उतने माइनस करते जाएं
- चाहे एक एक कर के पढ़ले जैसे पहले पूरी फ़जर पढ़ ले फिर पुरी ज़ोहर इस तरह से, या फ़िर तरतीब से पढ़ ले जैसे फजर फिर ज़ोहर फिर असर इस तरह
- दिन की नफ़्ल नमाज़ या किसी भी वक़्त में नफ़्ल नमाज़ पढ़ने से बेहतर है कि क़ज़ा नमाज़ को अदा किया जाए
- अवाम में मशहूर है की किसी बड़ी रात को 4 रकअत क़ज़ाये उमरी की नीयत से पढ लेंगे तो ज़िन्दगी की सारी क़ज़ा नमाज़ माफ हो जाएगी, लेकिन दरअसल ये झूठ और अफवाह है, ऐसी कोई नमाज़ नही है
- कज़ाये उमरी की नमाज़ किसी भी वक़्त पढ़ सकते हैं सिवाए मकरूहा वक़्तों के
- जागने वाली रातों में ज़्यादा से ज्यादा क़ज़ा नमाज़ों को अदा करें
- कोई भी फ़र्ज़ नमाज़ बिला उज़रे शरई बैठ कर पढ़ेंगे तो नमाज़ ही न होगी, लिहाज़ा नमाज़ों को खड़े हो कर पढ़ना होगा
- अगर कोई क़ज़ा नमाज़ अदा कर रहा था और सकारात का वक़्त आ गया तो अपने घरवालों (वारेसीन) को बाकी बची नमाज़ों की फ़िदया अदा करने की वासिय्यत कर दे
क़ज़ा इनकी पढ़नी है
2 रकअत फ़र्ज़ फजर की,
4 रकअत फ़र्ज़ ज़ोहर की,
4 रकअत फ़र्ज़ असर की,
3 रकअत फ़र्ज़ मग़रिब की,
4 रकअत फ़र्ज़ और 3 रकअत वित्र ईशा की
- क़ज़ा नमाज़ की सहूलत
- फ़र्ज़ की पहली रकअत में अगर सना पढ़ना चाहे तो पढ़ लें, या फिर सीधा सूरह फातिहा और उसके बाद कोई सूरह मिला लें
- फ़र्ज़ की तीसरी और चौथी रकअत में सूरह फातिहा की जगह 3 बार सुब्हान अल्लाह पढ़ले और रुकू कर लें
- रुकू और सज्दे में 3 बार तस्बीह की जगह 1- 1 मर्तबा पढ़ लें
- आखिरी क़ायदा जिसमे सलाम फेरा जाता है उसमे अत्तहयात के बाद दुरूद इबरहीमी की पहली लाइन बस पढ़ लें
- ईशा के वित्र में दुआए क़ुनूत की जगह 3 बार अल्लाहुम्मगफ़िरली कहलें बस
क़ज़ाये उमरी की नीयत
नियत की मैने (यहां पर कितनी रकअत) रकअत नमाज़ फ़र्ज़ _ (कोन से वक़्त की) की सबसे पहले की जो मेरे ज़िम्मे रह गयी वास्ते अल्लाह तआला के रुख़ मेरा किबला शरीफ की तरफ अल्लाहु अकबर