गोरखपुर। शहर में पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कई तबरुकात मौजूद हैं। पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मूए (पवित्र बाल) व कदम मुबारक के निशान की जियारत शहर में आसानी से की जा सकती है। शहर में पांच मूए मुबारक सैकड़ों सालों से रखे हुए हैं। यह मूए मुबारक शहर के दीवान बाजार, छोटे काजीपुर, बड़े काजीपुर में मौजूद हैं। जिनकी जियारत साल में एक बार अकीदतमंदों को कराई जाती है।
बारह रबीउल अव्वल शरीफ यानी पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के यौमे पैदाइश की तारीख के मौके पर मूए मुबारक की जियारत की जा सकती है। जियारत के बाद इस पूरे साल सुरक्षा में रख दिया जाता है।
मोहल्ला दीवान बाजार में ख्वाजा सैयद अख्तर अली मरहूम के परिवार में जो मूए मुबारक है उसकी जियारत रबीउल अव्वल शरीफ के पहले रविवार को दोपहर की नमाज के बाद कराई जाती है। यहां पर दो मूए मुबारक रखे हुए हैं। दीवान बाजार में ख्वाजा सैयद अख्तर अली मरहूम के परिवार में मूए मुबारक उनके दादा सैयद सज्जाद अली मुगल शासन काल में कश्मीर से लाए थे। वह इत्र के कारोबारी थे।
वहीं बडे़ काजीपुर में शाह मोहम्मद अबरारुल हक मरहूम के परिवार में मौजूद मूए मुबारक की जियारत और उसका गुस्ल 12 रबीउल अव्वल शरीफ को बाद नमाज जोहर मिलाद शरीफ के बाद कराया जाता है। यहां पर पैगंबरे इस्लाम का एक मूए मुबारक है। इनके परिवार के बुजुर्ग हजरत मोहम्मद मुकीम शाह अलैहिर्रहमां आज से करीब तीन सौ साल पहले बल्ख या बुखारा से हिन्दुस्तान आए। वहां पर एक बुजुर्ग ने उन्हें एक प्याला और शीशी में मूए मुबारक देकर कहा कि यह आपकी अमानत है। शाह साहब यह निशानी लेकर हिन्दुस्तान आ गए। तभी से यह मूए मुबारक इनके खानदान में चला आ रहा है। इनके परिवार की छह पुश्तें मूए मुबारक की जियारत करा रही है। यहां पर मौजूद मूए मुबारक खास कमरे में रखा गया है। जिसका दरवाजा बारह रबीउल अव्वल शरीफ को खोला जाता है। गुस्ल का पानी बतौर तबरुक दिया जाता है। यहां पर सिर्फ पुरूषों को जियारत कराई जाती है। पानी में जब भी हाथ डाला जाता है तो मूए मुबारक पानी की तह में चला जाता है।
मोहल्ला छोटे काजीपुर में पुराने एलआईयू आफिस के निकट मौलवी अब्दुल हन्नान के परिवार में रखे मूए मुबारक की जियारत भी बारह रबीउल अव्वल शरीफ को बाद नमाज जोहर कराई जाती है। यहां दो मूए मुबारक मौजूद है। यहां पर महिलाओं व पुरूषों दोनों को जियारत कराई जाती है। यहां एक खास कमरे में नीलम की छोटी डिबिया में मूए मुबारक रखा हुआ है। मूए मुबारक का कमरा साल में जियारत वाले दिन ही खुलता है।
इसके अलावा जाफरा बाजार स्थित सब्जपोश हाउस खानदान में पैग़ंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कदमों के निशान हैं। जिसकी जियारत ईद व बकरीद की नमाज के बाद सब्जपोश हाउस मस्जिद में करवाई जाती है।
यह पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का मोज़ज़ा है कि इस्लामी तारीख की 1445 हिजरी में मूए मुबारक व कदम मुबारक के निशान मौजूद हैं और कयामत तक महफूज रहेंगे। अल्लाह ने पैगंबरों के जिस्म को जमीन के ऊपर हराम कर दिया है। मूए मुबारक की जियारत करना हर मुसलमान के लिए बाइसे सवाब है। खुशनसीब हैं शहर के मुसलमान कि उनके शहर में पैग़ंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के मूए मुबारक व कदम मुबारक के निशान मौजूद हैं।