इस वक़्त लोग चांद के मसअले में बहुत ज़्यादा उलझे हुए हैं। अक्सर जगहों पर पिछला चांद 29 का मान कर 28 सितंबर को रबी-उल-अव्वल की 12 तारीख़ होना क़रार पाया और 28 सितंबर को जुलूस निकालने का ऐलान हुआ।
जबकि दूसरी तरफ़ बरेली शरीफ़ से ऐलान हुआ कि पिछला चांद 30 का था और 29 सितंबर को रबी-उल-अव्वल की 12 तारीख़ होगी।
लोग दो तरह के ऐलान देखने के बाद कशमकश में पड़ गए। लेकिन उलझन वाली कोई बात नहीं है। शरीअ़त की नज़र से क्या मसअला है वह आप मुलाहज़ा फ़रमाएं।
जिस जगह चांद नज़र आया वहां का कोई मसअला ही नहीं है।
लेकिन जहां चांद नज़र नहीं आता वहां पर उस जगह से शहादत (गवाही) ली जाती है जहां चांद नज़र आ गया होता है। अगर शहादत ह़ासिल हो जाती है तो इस दूसरे शहर में जहां चांद नज़र नहीं आया यहां पर भी चांद मान लिया जाता है।
लेकिन जिस शहर में ना चांद दिखाई दे और ना कोई शहादत आए तो वहां पिछला चांद 30 का ही माना जाएगा।
लिहाज़ा जिन लोगों ने पिछला चांद 29 का माना है और 28 सितंबर को 12 रबी-उल-अव्वल होने का ऐलान किया है उन जगहों पर या तो चांद दिखाई दिया या फिर दूसरी जगह से जहां चांद दिखाई दिया था शहादत ह़ासिल की गई।
और बरेली शरीफ़ से जो लेटर पैड जारी हुआ है उसमें साफ़ तौर पर लिखा हुआ भी है कि यह ऐलान सिर्फ़ बरेली शरीफ़ के लिए है दूसरे शहर के लोग अपने इलाक़े का एतबार करें अगर आपके इलाके में चांद दिखा है तो ठीक वरना अपने शहर के क़ाज़ी की तरफ़ नज़र करें और उनके फैसले पर अ़मल करें।
मुह़म्मद अमन नूरी मुरादाबादी ‘अमन’