सेराज अहमद कुरैशी
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश।
उर्दू के प्रसिद्ध शायर रघुपति सहाय फ़िराक़ गोरखपुरी की जयन्ती के अवसर पर साजिद अली मेमोरियल कमेटी एवम् फ़िराक़ लिटरेरी सोसायटी, गोरखपुर के संयुक्त तत्वावधान में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसका विषय था ” सदी की आवाज : फ़िराक़ ” गोरखपुरी। कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रसिद्ध उर्दू स्कालर डा. एहसान अहमद ने तथा संचालन मोहम्मद फर्रुख जमाल ने किया।
परिचर्चा में अपने अध्यक्षीय भाषण में डा. एहसान अध्यक ने कहा कि फ़िराक़ गोरखपुरी का कमाल यह है कि उन्होंने भारतीय संस्कृति और यहाँ के श्रृंगार रस का वर्णन अपनी शायरी में करके उर्दू शायरी के दायरे को नये मज़ामीन से मालामाल कर दिया । महबूब सईद हारिस ने कहा कि फ़िराक़ गोरखपुरी गज़ब के शायर थे लेकिन उन्होंने अलग-अलग विधाओं पे अपना कलम उठाया और हर जगह अपनी एक अलग छाप छोड़ी। ज़मीर अहमद पयाम ने कहा कि फिराक की शख्सियत उनके सदी की सबसे बडी शख्सयत थी। फ़िराक़ हिन्दी उर्दू और अंग्रेज़ी के ज्ञाता और विद्वान थे। यही वजह थी कि जोश मलीहाबादी और फैज़ अहमद फैज़ जैसे बड़े शायर भी फ़िराक़ गोरखपुरी के सामने नहीं टिक पाते थे। मशहूर शायर नसीम सलेमपुरी ने अपनी नज़म के माध्यम से कहा कि
कसरे जबान उर्दू के मेमार थे फ़िराक़
ग़ालिब का मन तो मीर के किरदार थे फ़िराक़
उनका अकाबरीन सुखन्दा मे था शुमार
वह उर्दू शायरी के थे रंगीन शाहकार
शायर में अनवर ज्या ने कहा कि
फ़िराक़ तेरे सुखन तेरी अज़मतों को सलाम
ज़ुवाँ पे अब भी है हर एक के फ़िराक़ का नाम
तमाम अहले अदब तुझ को याद रखेंगे
पढ़ेंगे तेरी ग़ज़ल खुद को शाद रखेंगे
मोहम्मद फर्रुख़ जमाल ने कहा कि फ़िराक़ गोरखपुरी ने अपने शायरी के आरम्भ में मीर और सौदा की पैरवी की। लेकिन इसके बावजूद उन्होंने अपनी शायरी के लिए एक अलग राह निकाली। आज हम फ़िराक़ की 126 वीं जयन्ती मना रहे हैं। नयी नस्ल फ़िराक़ को भूलती जा रही है। फ़िराक़ खुद अपने ही शहर गोरखपुर में बेगाने हो गये हैं।
परिचर्चा में आसिफ सईद, ईक़बाल अहमद, हफीज़ुल हसन, अनवार आलम, फ़ीरोज़ अहमद , फरहान काज़मी • हासिर अली, महमूदुल हक़ महमूद आदि उपस्थित थे।