मसाइल-ए-दीनीया

मुहर्रम में सबील लगाना और फातिहा करना कैसा है ?

सवाल:
मुसलमानों का मुहर्रम शरीफ में पानी या शरबत की सबील लगाना कैसा है ?
जवाबः
आलाहज़रत रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं पानी या शरबत की सबील लगाया जब्कि यह निय्यत महमूद (यानी अच्छी निय्यत के साथ) और अल्लाह की रजा के लिए सवाब रसाई अरवाहे तय्यबा अइम्मए अतहार (आइम्मए अतहार की पाक अरवाह को सवाब पहुंचाना) मकसूद हो बिला शुबहा बेहतर व मुस्तहब व कारे सवाब है। (फतावा रज़विया शरीफ, जदीद जिल्द:24, सफा:520)

सवाल:
इमाम हुसैन और दिगर शोहदाए करबला रज़ियल्लाहु अन्हुम की नियाज व फातिहा के बारे में उलमा-ए-किराम क्या फरमाते हैं ?
जवाब:
आलाहज़रत रज़ियल्लाहु अन्हु फरमाते हैं फातिहा जायज़ है रोटी, शीरीनी, शरबत जिस चीज़ पर हो मगर ताज़िया पर रख कर या उस के सामने होना जेहालत है और उस पर चढ़ाने के सबब तबर्रूक समझना हिमाकत है। हां ताज़िया से जुदा जो खालिस सच्ची निय्यत से हज़राते शोहदाए करबला रज़ियल्लाहु अन्हुम की नियाज हो वह जरूर तबरीक है। वहाबी खबीस उसे खबीस कहता है खुद खबीस है। (फतावा रज़विया शरीफ, जदीद जिल्द:24, सफा:498)

आगे इरशाद फरमाते हैं हज़रत इमामे हुसैन की नियाज़ खानी चाहिए और ताजिया का चढ़ा हुआ खाना नहीं खाना चाहिए ताजिया पर चढ़ाने से हजरत इमाम हुसैन की नियाज नहीं हो जाती और अगर नियाज़ दे कर चढ़ाएं या चड़ा कर नियाज़ दिलाये तो उस के खाने से एहतेराज़ (यानी बचना चाहिए।(फतावा रज़विया शरीफ, जदीद जिल्द:24, सफा:524)

मुफ्ती मुहम्मद खलील खां बरकाती कादरी रहमतुल्लाह अलैह फरमाते हैं माहे मुहर्रम में दस दिनों तक खुसूसन दसवीं को हजरत सय्यदुना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व दिगर शोहदाए करबला को ईसाले सवाब करते हैं। कोई शरबत पर फातिहा दिलाता है। कोई मिठाई पर, कोई रोटी गोश्त पर, कोई खिचड़ा पकवाता है। बहुत से पानी और शरबत की सबील लगा देते हैं जाड़ों (यानी सरदियों) में चाय पिलाते हैं यह सब जायज़ हैं। इन को नाजायज़ नहीं कहा जा सकता। (सुन्नी बहिश्ती ज़ेवर, हिस्सा:3, सफा:318,319)

शैखुल हदीस हज़रत अल्लामा मौलाना अब्दुल मुस्तफा आज़मी रहमतुल्लाह अलैह इरशाद फरमाते हैं मुहर्रम के दस दिनों में खुसूसन आशूरा के दिन शरबत पिला कर, खाना खिला कर, शीरीनी पर या खिचड़ा पका कर शोहदाए करबला की फातिहा दिलाना और उन की रूहों को सवाब पहोंचाना यह सब जायज़ और सवाब के काम हैं और सब चीजों का सवाब यकीनन शोहदाए करबला की रूहों को पहोंचता है। और उस फातिहा व ईसाले सवाब के मसअले में हन्फी शाफई मालेकी हम्बली अहले सुन्नत के चारों इमाम का इत्तेफाक है।(शरहुल अकाएद, सफा:172)

पहले ज़मानों में फिरकए मोतजिला और इस जमाने में फिरकए वहाबिया इस मसअले में अहले सुन्नत के खिलाफ हैं और फातिहा व ईसाले सवाब से मना करते रहते हैं। तुम मुसलमानाने अहले सुन्नत को लाजिम है कि हरगिज़ हरगिज़ न उन की बातें सुनो न उन लोगों से मेल जोल रखो वरना तुम खुद भी गुमराह हो जाओगे और दूसरों को भी गुमराह करोगे।(जन्नती ज़ेवर, तख़रीज शुदह:159)

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