गोरखपुर। पहली मुहर्रम से शुरु हुआ ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ की महफिलों का दौर तीसरी मुहर्रम को भी जारी रहा। ‘शोह-दाए-कर्बला’ का जिक्र सुन सबकी आंखें नम रहीं। शहर की एक दर्जन से ज्यादा मस्जिदों व घरों में कर्बला की दास्तान सुनी और सुनाई जा रही है।
बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि कर्बला की जंग दुनिया की पहली आतंकी कार्रवाई थी। जिसमें शहीद हुए लोगों में छह माह के बच्चे से लेकर 78 साल के बुर्जुग शामिल थे।
फैजाने इश्के रसूल मस्जिद शहीद अब्दुल्लाह नगर में मुफ्ती अख़्तर हुसैन ने कहा कि इमाम हुसैन शहीद तो हो गए लेकिन दुनिया को सब्र व इंसानियत का पैग़ाम दे गए और यह बता गए की दीन-ए-इस्लाम सब्र व शहादत से फैला। इसके लिए कुर्बानियां दी गईं।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि मुसलमानों पर अमीरुल मोमिनीन हज़रत अली, हजरत फातिमा, हज़रत हसन व हजरत हुसैन से मुहब्बत रखना वाजिब है।
सुन्नी बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि हम हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की कुर्बानी को नहीं भूल सकते।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना असलम ने कहा कि पैगंबरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने अपने नवासे हज़रत सैयदना इमाम हुसैन की पैदाइश के साथ ही आपके शहादत की खबर दे दी थी। हज़रत अली, हज़रत फातिमा ज़हरा, हज़रत हसन और खुद इमाम हुसैन भी जानते थे कि एक दिन कर्बला के मकाम पर शहीद किया जाऊंगा, लेकिन किसी ने भी और खुद हज़रत इमाम हुसैन ने भी कभी किसी किस्म का शिकवा जुबान पर नहीं लाया, बल्कि सब्र के साथ अपनी शहादत की खबर सुनते रहे।
मुकीम शाह जामा मस्जिद बुलाकीपुर में मौलाना रियाजुद्दीन ने कहा कि ‘शोह-दाए-कर्बला’ ने दुनिया को सब्र व इंसानियत का एक अज़ीम पैग़ाम दिया है। जिसे रहती दुनिया तक नहीं भुलाया जा सकता।
गौसिया जामा मस्जिद छोटे काजीपुर में मौलाना मोहम्मद अहमद निजामी ने कहा कि हदीस में है कि पैगंबरे इस्लाम हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया मुझे हज़रत जिब्रील ने ख़बर दी कि इमाम हुसैन को तफ़ (कर्बला) में शहीद किया जाएगा। हज़रत जिब्रील मेरे पास वहां की मिट्टी लाए और मुझसे बताया कि यह हुसैन के शहादतगाह की मिट्टी है। तफ करीबे कूफा उस स्थान का नाम है जिसको कर्बला कहते है। हदीस में आया है कि वह मिट्टी उम्मुल मोमिनीन हज़रत उम्मे सलमा के पास मौजूद रही। वह फरमाती हैं कि मैंने उस सुर्ख मिट्टी को एक शीशी में रख दिया जो हजरत इमाम हुसैन की शहादत के दिन खून हो गई।
इसी तरह अन्य मस्जिदों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल हुई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई।