कहानी धार्मिक

हिकायत: हल्वा

लेखक: नौशाद अह़मद ज़ैब रज़वी, इलाहाबाद

एक मुसलमान एक यहूदी और एक ईसाई तीनों साथ में कहीं सफर पर जा रहे थे चुंकि रमज़ान शरीफ का मौका था तो मुसलमान रोज़े से था,शाम होते होते ये लोग एक गांव में पहुंचे तो वहां के एक शख्स ने इन तीनो को मुसलमान समझा और इफ्तार के लिए ढेर सारा हलवा पका कर ले आया,हलवा देखकर ईसाई और यहूदी ने मशविरह किया कि मुसलमान रोज़े से है अगर इस वक़्त हलवा खाया तो ये ज़्यादा खा जायेगा लिहाज़ा किसी तरकीब से अभी हलवा न खाया जाए,ये कहकर दोनों मुसलमान के पास पहुंचे और कहने लगे कि हल्वा अभी संभालकर रख दिया जाए और सुबह को हलवा वो शख्स खायेगा जिसने सबसे अच्छा ख्वाब देखा होगा,और अपने मन में कहने लगे कि सुबह तो इसका रोज़ा होगा लिहाज़ा ये खा ही नहीं पायेगा खैर हलवा रख दिया गया फिर तीनों सो गए,सहरी का वक़्त हुआ तो ईसाई और यहूदी तो सोते रहे मुसलमान उठा और पूरा हलवा खा लिया नियत की और सो गया,सुबह को फिर जब तीनो उठे तो सबसे पहले यहूदी बोला कि भाई आज तो हज़रत मूसा अलैहिस्सलाम मेरे ख्वाब में आये और मुझे अपने साथ कोहे तूर पर ले गए अब इससे बेहतर ख्वाब क्या होगा लिहाज़ा हलवा तो मुझे ही मिलना चाहिए,इस पर ईसाई बोला कि तुम क्या कहते हो मेरे ख्वाब में तो हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम तशरीफ लायें और अपने साथ मुझे आसमान पर ले गए अब कोहे तूर है तो ज़मीन पर ही न पर आसमान की बात तो अलग ही है लिहाज़ा ये ज़्यादा बेहतर ख्वाब है सो हल्वा मेरा है,अब मुसलमान का नंबर आया तो उसने कहा कि भाई मेरे नबी सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम भी मेरे ख्वाब में आये सहरी का वक़्त था सो मुझसे कहा कि ये हलवा रखा है सहरी करलो लिहाज़ा मुझे उनका हुक्म मानते हुए हलवा खाना पड़ा,वो दोनों बोले कि क्या तुमने पूरा हलवा खा लिया तो मुसलमान बोला अब नबी का हुक्म न मानकर काफिर तो नहीं हो सकता है इसलिए खा लिया,फिर दोनों बोले अरे कम से कम हमको तो बुला लेते तो मुसलमान बोला अरे भाई मैंने तो बहुत आवाजें दी मगर तुम लोगों ने सुनी ही नहीं क्योंकि तुममें से एक तो कोहे तूर पर था और दूसरा आसमान पर| (सच्ची हिकायत,हिस्सा 3,सफह 634)

सबक़: बदमज़हब अपना मतलब निकालने के लिए किसी भी हद्द तक जा सकता है और बड़े बड़े बहाने तलाश करता रहता है कि किस तरह एक मुसलमान को अपने फरेब में ला सके,अगर मुसलमान इन दोनों के फरेब में आ जाता तो हलवे से महरूम हो जाता और सुबह को भूख से परेशान होता उसी तरह अगर कोई मुसलमान अल्लाह न करे कि बदमज़हबो के चंगुल में फंस गया तो क़यामत के दिन जन्नत से महरूम हो जायेगा और आख़िरत की सख्तियों में परेशान रह जायेगा,इसलिए होशियार रहें और अपने ईमान की हिफाज़त के लिए इल्मे दीन से आरास्ता रहे

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