अफ्रीका के मोरक्को देश में पैदा होने वाले मुहम्मद बिन अब्दुल्लाह इब्ने बतूता का नाम अपने दौर के सबसे मशहूर मुसाफिरों में शुमार होता है। इब्ने बतूता ने तकरीबन 65,000 मील का सफर तय किया था। उस दौर में इतना लंबा सफर शायद ही किसी दूसरे मुसाफिर ने किया हो। वो सिर्फ 21 बरस की उम्र में ही सफर पर निकल पड़े थे। चलते वक्त उन्होंने ये कभी नहीं सोचा था की उन्हें इतने लंबे देश देशांतरों का सफर करने का मौका मिलेगा।
सफर के शुरुआती दौर में वो एक कारवां के साथ दमिश्क और फिलिस्तीन होते हुए मक्का पहुंचे यहां से ईरान, इराक, मोसुल आदि मुल्कों से घूम कर वापस मक्का लौटे। यंहा तीन बरस रुकने के बाद जुनूबी अरब, मशरिक़ी अफ्रीका तथा फारस के बंदरगाह हुर्मुज से फिर तीसरी बार मक्का पहुंचे। फिर वहां से क्रीमिया, खीवा, बुखारा होते हुए अफगानिस्तान के रास्ते हिंदुस्तान पहुंचे। उस समय हिन्दोस्तान में तुग़लक़ खानदान की हुकूमत कायम थी, सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने उनका पुरजोश इस्तेकबाल किया और उन्हें दारुलहकूमत का काज़ी मुक़र्रर कर दिया। 8 साल तक वो दिल्ली में इस ओहदे पर रह कर अपना फर्ज निभाते रहे, इस दौरान उन्होंने तुग़लक़ दौर के ढेरों अहम् वाक्यात को कलमबंद किया, सुल्तान मुहम्मद बिन तुग़लक़ ने चीन के बादशाह के साथ अपने ताल्लुकात को और बेहतर बनाने के लिए इब्ने बतूता को ढेरों तोहफे देकर चीन जाने का हुक्म दिया, लेकिन हुआ ये की रास्ते में डाकुओं ने इब्ने बतूता से सारे तोहफे लूट लिए, इस वाक्ये के बाद इब्ने बतूता सुल्तान के जाहो-जलाल का सामना करने की हिम्मत न जुटा सके और दिल्ली वापस लौटने के बजाय दोबारा अपना सफर जारी कर दिया।
चीन से होते हुए वहां से मगरिबी एशिया, शुमाली अफ्रीका और स्पेन के मुस्लिम रियासतों का सफर करते हुए आखिर में वो मोरक्को की दारुल हुकूमत “फैज” लौट गए। मोरक्को पहुंचने पर वहां के सुल्तान ने उनका पुरजोश तरीके से इस्तेकबाल किया और ढेरों तहाएफ़ से नवाजा, इसके अलावा सुल्तान ने उनके लिखे हुए सफरनामें को एक किताब की शक्ल में तैयार करवाया।