गोरखपुर

नबी-ए-पाक की सुन्नतों पर अमल करें: मुफ़्ती शहाबुद्दीन

  • मस्जिद मियां साहब में जलसा

गोरखपुर। मस्जिद मियां साहब जुबली फार्म सैनिक विहार नन्दानगर में जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से जलसे का आगाज़ हुआ। नात-ए-पाक पेश की गई।

मुख्य अतिथि मुफ़्ती शहाबुद्दीन मिस्बाही ने कहा कि नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नतों के मुताबिक अपनी दिनचर्या में बदलाव करें, आपका खाना-पीना, सोना, उठना, बैठना, चलना, पहनना आदि सब इबादत में गिना जाएगा। अपनी जायदाद अपने माल के हिसाब से हर साल गरीबों, बेसहारों के लिए ज़कात, फित्रा निकालें। नमाज़ की पाबंदी करें। शरीअत पर चलें। नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तालीम है कि मजदूरों का पसीना सूखने से पहले उनकी मजदूरी दे दो। अगर कोई भर पेट खाना खाकर सो गया और उसके पड़ोस में कोई भूखा सोया तो बेशक वह सजा का हक़दार है और हिसाब किताब के दिन उससे पूछा जाएगा। अगर कोई मरीज़ है तो उसकी मदद करें। बुजुर्गों की मदद करें। गरीबों की मदद करें। सबके ख़ुशी व ग़म में शामिल हों।

विशिष्ट अतिथि मुफ़्ती निसार अहमद मिस्बाही ने कहा कि ईद मिलादुन्नबी पर अर्श से लेकर फर्श तक खुशियां मनाई जाती है। इंसानों की रहनुमाई के लिए 12 रबीउल अव्वल यानी 20 अप्रैल सन् 571 ई. में अरब के मक्का शहर में नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्म हुआ। वालिद का नाम हज़रत अब्दुल्लाह था। नबी-ए-पाक की ज़ाहिरी जिंदगी तिरसठ (63) बरस की हुई। वालिद का इंतकाल विलादत से पहले हो गया। जब आपकी उम्र 6 साल की हुई तो वालिदा हज़रत आमिना का इंतक़ाल हो गया। जब आपकी उम्र 8 साल की हुई तो दादा हज़रत अब्दुल मुत्तलिब का इंतक़ाल हो गया। जब आपकी उम्र 12 साल की हुई तो आपने मुल्के शाम का तिजारती सफ़र किया और 25 साल की उम्र में मक्का की एक इज्ज़तदार ख़ातून हज़रत ख़दीजा के साथ निकाह फ़रमाया और 40 साल की उम्र में ऐलाने नुबूवत फ़ारान की चोटी से फ़रमाया और 53 साल की उम्र में हिजरत की। आपने अल्लाह के पैग़ाम को पूरी दुनिया में पहुंचाया। आपका मजारे मुबारक मदीना शरीफ में है जहां पर आशिक-ए-रसूल जियारत कर फैज़याब होते हैं। नबी-ए-पाक के कब्र अनवर का अंदरूनी हिस्सा, जो आपके जिस्म अतहर से लगा हुआ है वह काबा शरीफ व अर्श-ए-आज़म से भी अफ़ज़ल है।

अंत में सलातो-सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। जलसे में निसार खान नन्हे, मौलाना हारून मिस्बाही, कारी मो. खैरुद्दीन, मौलाना वारिस अली, कारी मो. रईसुद्दीन, हाफिज अयूब खान सहित अकीदतमंदों ने शिरकत किया।

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