कविता

कविता: जोंक

रोपनी जब करते हैं कर्षित किसान ;तब रक्त चूसते हैं जोंक!चूहे फसल नहीं चरतेफसल चरते हैंसाँड और नीलगाय…..चूहे तो बस संग्रह करते हैंगहरे गोदामीय बिल में!टिड्डे पत्तियों के साथपुरुषार्थ को चाट जाते हैंआपस में युद्ध करकाले कौए मक्का बाजरा बांट खाते हैं!प्यासी धूपपसीना पीती है खेत मेंजोंक की भाँति!अंत में अक्सर हीकर्ज के कच्चे खट्टे […]