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मस्जिदों में जारी ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिल
गोरखपुर। छठवीं मुहर्रम को मस्जिदों, घरों व इमामबाड़ों में ‘जिक्रे शोह-दाए-कर्बला’ महफिलों का दौर जारी रहा, फातिहा ख्वानी हुई। ‘शोह-दाए-कर्बला’ का जिक्र सुनकर सबकी आंखें भर आईं। शहर की ज्यादातर मस्जिदों में जुमा की नमाज से पहले तकरीर में इमामों ने ‘शोह-दाए-कर्बला’ पर रौशनी डाली और पूरा वाकया बयान किया। मियां साहब ने अपने हमराहियों के साथ इमामबाड़ा मियां बाज़ार में रवायती गश्त की। दूसरी ओर शहर के निजामपुर, रायगंज, अस्करगंज, खूनीपुर, नखास, मियां बाजार आदि कई मोहल्लों से रौशन चौकी और अलम के साथ मुहर्रम के जुलूस निकले। खूनीपुर से भोर में निकलने वाली शेख झाऊं की मेंहदी देखने वाले रात भर इंतजार करते रहे। देख कर ही घर लौटे। मुहर्रम के जुलूसों में शामिल नौजवानों ने एक से बढ़कर एक करतब दिखाए।
मरकजी मदीना जामा मस्जिद रेती चौक में मुफ्ती मेराज अहमद क़ादरी ने कहा कि शहीद-ए-आज़म हज़रत इमाम हुसैन की कुर्बानी अपने मुल्क से मोहब्बत का संदेश देती है। इमाम हुसैन अपने नाना पैग़ंबर-ए-आज़म हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की पवित्र धरती पर खूंरेजी नहीं चाहते थे। इसलिए मजबूर होकर अपना वतन छोड़ा। जाते समय इमाम हुसैन को वतन छोड़ने का बहुत दुख था। यही कारण है कि मुसलमान अपने मुल्क से मुहब्बत करता है।
मस्जिद फैजाने इश्के रसूल अब्दुल्लाह नगर में मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि इमाम हुसैन ने अपने साथियों के साथ यजीद की कई गुना बड़ी फौज के साथ किसी मंसब, तख्तोताज, बादशाहत, किसी इलाके को कब्जाने अथवा धन-दौलत के लिए जंग नहीं की बल्कि पैगंबर-ए-आज़म के दीन-ए-इस्लाम व इंसानियत को बचाने के लिए जंग की थी।
अक्सा मस्जिद शाहिदाबाद में मौलाना तफज्जुल हुसैन रज़वी ने कहा कि यज़ीदियत हर दौर में हुसैनियत से हारती रहेगी क्योंकि हक़ से कभी बातिल जीत नहीं सकता। जब परेशानी आए तो सब्र से काम लेना है। वर्तमान दौर में हजरत हसन-हुसैन की शहादत को याद कर स्वच्छ समाज निर्माण करने की जरूरत है।
जामा मस्जिद रसूलपुर में मौलाना जहांगीर अहमद अजीजी ने कहा कि इमाम हुसैन अपने इल्म, अख्लाक, बहादुरी, तकवा, परेहजगारी, इबादत और किरदार की वजह से बहुत ज्यादा मकबूल हैं। बुराई का नाश करने के लिए पैग़ंबर-ए-आज़म के नवासे हज़रत फातिमा के जिगर के टुकड़े हज़रत अली के सुपुत्र इमाम हुसैन, उनके परिवार व साथियों सहित कुल 72 लोगों ने शहादत दी।
मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर में नायब काजी मुफ्ती मोहम्मद अजहर शम्सी ने कहा कि इमाम हुसैन व उनके साथियों ने यजीद फौज की बर्बता के सामने इस्लाम के अलम को झुकने नहीं दिया। वह अपने परिवार समेत जालिमों के हाथों शहीद हो गये, लेकिन दुनिया को संदेश दे गए कि सही कदम उठाने वाला शहीद होकर भी हमेशा ज़िंदा रहता है। सब्र की मेराज का नाम इमाम हुसैन है।
जामा मस्जिद मुकीम शाह बुलाकीपुर में मौलाना रियाजुद्दीन कादरी ने कहा कि इंसानियत और दीन-ए-इस्लाम को बचाने के लिए पैग़ंबर-ए-आज़म के नवासे हज़रत इमाम हुसैन ने अपने कुनबे और साथियों की कुर्बानी कर्बला के मैदान में दी।
बेलाल मस्जिद इमामबाड़ा अलहदादपुर में कारी शराफत हुसैन कादरी ने कहा कि हजरत इमाम हुसैन का काफिला 61 हिजरी को कर्बला के तपते हुए रेगिस्तान में पहुंचा। इस काफिले के हर शख़्स को पता था कि इस रेगिस्तान में भी उन्हे चैन नहीं मिलने वाला और आने वाले दिनों में उन्हें और अधिक परेशानियां बर्दाश्त करनी होंगी। बावजूद इसके सबके इरादे मजबूत थे। अमन और इंसानियत के ‘मसीहा’ का यह काफिला जिस वक्त धीरे-धीरे कर्बला के लिए बढ़ रहा था, रास्ते में पड़ने वाले हर शहर और कूचे में जुल्म और प्यार के फर्क को दुनिया को बताते चल रहा था।
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर में मौलाना मो. असलम रजवी ने कहा कि इमाम हुसैन ने शहादत देकर दीन-ए-इस्लाम व मानवता को बचा लिया। वहीं जमुनहिया बाग गोरखनाथ में जलसा हुआ। जिसमें मौलाना अल्ताफ, मौलाना हारून, मौलाना अमीरुद्दीन आदि ने शिरकत की। अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। शनिवार को शाम 7:15 बजे गाज़ी मस्जिद गाजी रौजा में शहीदे आजम संगोष्ठी होगी। जिसमें मुफ्ती अख्तर हुसैन व मौलाना रियाजुद्दीन कादरी तकरीर करेंगे।
इमाम हुसैन की याद में बांटा लंगर-ए-हुसैनी
गोरखपुर। शुक्रवार को हज़रत सैयदना इमाम हुसैन रदियल्लाहु अन्हु व कर्बला के शहीदों की याद में गौसे आज़म फाउंडेशन के जिलाध्यक्ष समीर अली, हाफिज मो. अमन, मो. फैज, वारिस अली, मो. इमरान, मो. जैद, अमान अहमद, रियाज़ अहमद, मो. शारिक, सैफ अली, मो. जैद चिंटू, समीर अहमद, सैयद जैद आदि ने गोरखनाथ, बक्शीपुर, दरगाह हज़रत मुबारक ख़ां शहीद नार्मल, दरगाह हज़रत नक्को शाह धर्मशाला बाज़ार आदि जगहों पर लंगर-ए-हुसैनी बांटा। वहीं बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर के निकट दरगाह हज़रत मोहम्मद अली बहादुर शाह के खादिमों द्वारा लंगर-ए-हुसैनी बांटा गया। इस मौके पर अली गजनफर शाह, बब्लू कुरैशी, आजाद, आसिफ, कासिम, आरिफ, शहजादे, अली अशहर, सैफ, अनस, सद्दाम, सैफी, चंदू, अर्शियान, जान मोहम्मद आदि मौजूद रहे।

