उनके घर कई फ़ाक़े हो जाते थे।मुरीद जंगल से जाकर करेल के फूल लाते थे और उन्हें पानी में उबाल कर के सब खाते थे।हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया(रहि.)का बयान है कि जिस दिन करेल के उबाले हुए फूलों में नमक की एक डली भी पड़ जाती थी वो गोया ई’द का दिन होता था। बिस्तर का हाल हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया(रहि.) ने यूँ बयान फ़रमाया:
“एक दिन शैख़ फ़रीद के सोने के वक़्त मैं हाज़िर था।मैंने देखा कि एक खाट बिछाया गया।वो कम्बल जिसको आप दिन में ओढ़ते थे उसको खाट के ऊपर बिछाया।कम्बल खाट के आख़िर तक नहीं पहुँता था।जहाँ आपके पैर होते थे,एक कपड़े का टुकड़ा पावनती को बिछा दिया गया। अगर उस टुकड़े को आप अपने ऊपर खींच लेते तो पैर की जगह ख़ाली रहती थी।एक अ’सा था जो आपको शैख़ क़ुतुबुद्दीन ने दिया था।उस को लाते और खाट पर सिरहाने रख देते। शैख़ फ़रीद उस अ’सा पर तकिया लगा कर आराम करते। उस पर हाथ फेर फेर कर चूमते थे।”
एक तरफ़ ये फ़क़्र और बे-सर-ओ-सामानी थी दूसरी तरफ़ ख़ल्क़-ए-ख़ुदा का इतना हुजूम था कि ख़ानक़ाह के दरवाज़े आधी रात के बा’द बंद होते थे।आने जाने वालों को उ’मूमन खाना खिलाया जाता था। नक़्द और जिन्स के तोहफ़े दिए जाते थे।सुल्तान नासिरुद्दीन एक-बार मुल्तान जाते हुए अजोधन से गुज़रा तो अपने सारे लश्कर के साथ हज़रत बाबा फ़रीद की ज़ियारत करने आया।उसके आने की ख़बर सुनकर हज़रत किसी दूसरी जगह मुंतक़िल हो गए और लश्कर के रास्ते पर आपका कुर्ता लटका दिया गया जिसे हज़ारों लश्करी बोसा देकर गुज़रते जाते थे हत्ता कि वो कुर्ता तार-तार हो कर फट गया।
सुल्तान ग़ियासुद्दीन बल्बन उस ज़माने में उलुग़ ख़ाँ कहलाता था और मुल्तान का गवर्नर था।वो हज़रत शैख़ फ़रीद की ख़िदमत में हाज़िर हुआ तो कुछ नक़्द रुपया और चार गावों की मुआ’फ़ी के काग़ज़ात पेश किए।बाबा साहिब ने नक़्दी क़ुबूल फ़रमा ली और उसी वक़्त अपनी ख़ानक़ाह के दरवेशों में तक़्सीम कर दी मगर जागीर लेने से इंकार कर दिया और फ़रमाया कि ये दस्तावेज़ें उठा लो।उनके तलब-गार दूसरे बहुत से हैं।