गोरखपुर। करीब 14 घंटा 36 मिनट का 22वां रोज़ा अल्लाह की हम्दो सना में बीता। मुकद्दस रमज़ान का अंतिम अशरा ‘जहन्नम से आज़ादी’ का जारी है। मस्जिद व घरों में इबादत व क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत का हो रही है। एतिकाफ करने वाले इबादत में मश्गूल हैं। रविवार को शबे कद्र की दूसरी ताक रात में खूब इबादत हुई। अल्लाह के बंदों ने इबादत कर गुनाहों से माफ़ी मांगी। हुसैनी जामा मस्जिद बड़गो में सामूहिक रोज़ा इफ्तार का आयोजन हुआ। जिसमें मिनहाज सिद्दीकी, जियाउल्लाह, शहादत अली, जावेद, ज़ुबैर ख़ान, इस्राइल, मौलाना उस्मान, रशीद, जकी, महताब, सुहेल आदि ने शिरकत की। बाज़ार में ईद की खरीदारी जोरों पर है। बाज़ारों में भीड़ उमड़ रही है। खासकर रेती, शाह मारुफ़, उर्दू बाज़ार, घंटाघर में चहल पहल ज्यादा है।
हाफ़िज़ महमूद रज़ा क़ादरी (इमाम चिश्तिया मस्जिद) कहते हैं कि सामान्यत: अन्य महीनों में और खास तौर पर मुकद्दस रमज़ान में फ़कीर, ग़रीब, यतीम व अन्य मोहताज मांगने वालों को न झिड़कें। खास तौर से मदरसे के प्रतिनिधियों और चंदा वसूली करने वालों के साथ मेहरबानी और अच्छा सुलूक करें। उन हज़रात का काम है कि रमज़ान में भूखे प्यासे रह कर मालदारों के माल का जकात लेकर माल पाक करना। अगर मौका मिले तो उनको इफ्तार और खाने में शरीक करें और सवाब हासिल करें।

मुफ्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी (नायब क़ाज़ी) ने कहा कि आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने दुनिया को अल्लाह की इबादत का संदेश देकर ज़हालत को दूर करने का पैग़ाम दिया। अल्लाह की इबादत की तीसरी कड़ी रोज़ा बना। दीन-ए-इस्लाम में होश संभालने से लेकर मरते दम तक अल्लाह के कानून और उसके हुक्मों के मुताबिक ज़िंदगी गुजारना इबादत है। मुकद्दस क़ुरआन कहता है कि तुम वह बेहतरीन उम्मत हो, जिसे लोगों के लिए बनाया गया है। तुम्हारा काम है कि तुम लोगों को नेकी का हुक्म दो, बुराई से रोको, अल्लाह पर यकीन रखो। रोज़ा अल्लाह के आदेश का पालन करने और अनुशासित जीवन जीने के लिए प्रशिक्षित करता है।

मुफ्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी (मुफ्ती-ए-शहर) ने कहा कि रमज़ान में प्रत्येक इंसान हर तरह की बुराइयों व गुनाहों से खुद को बचाता है। रमज़ान की रातों में एक रात शबे कद्र की कहलाती है। यह रात बड़ी खैर व बरकत वाली रात है। क़ुरआन में इसे हजारों महीनों से अफ़ज़ल बताया गया है। यह वह पाक रात है, जिसमें हज़रत जिब्राईल अलैहिस्सलाम फरिश्तों की एक बड़ी जमात लेकर जमीन पर तशरीफ लाते हैं। अल्लाह के हुक्म से पूरी दुनिया का चक्कर लगाते हैं। इबादत में रात गुजारने वालों के लिए दुआएं करते हैं और मुबारकबाद पेश करते हैं। पूरी रात चारों तरफ सलामती ही सलामती रहती है। फज्र का वक्त होते-होते यह नूरी काफिला वापस चला जाता है। रमज़ान के आख़िरी अशरा की 21, 23, 25, 27 व 29वीं रातों को शबे कद्र की रात बताया गया है।
