मुफ्ती मुजाहिद हुसैन रज़वी मिस्बाही
सदर मुफ्ती, दारूल उलूम ग़रीब नवाज़, प्रयागराज, यू. पी
इस्लाम धर्म ने अपने उन अनुयाइयों पर ज़कात के रूप में
प्रति वर्ष अपनी बचत के अढ़ाई पर्तिशत हिस्से का ग़रीबों को मालिक बना देना अनिवार्य कर दिया है जो आर्थिक रूप से अमीरी की एक निर्धारित रेखा पर पहुंच गये हों, और वह रेखा यह है कि कोई मुसलमान 653.184 ग्राम चांदी, या 93.312 ग्राम सोना या इन दोनों धातुओं में से किसी एक धातु की उल्लिखित मात्रा के वास्तविक बाज़ार मुल्य के बराबर नकद, या व्यापारिक सामान का मालिक हो जाए।
ज़कात अदा करने के फ़ायदे
ज़कात का अर्थ “पाकीज़गी” है, जब एक आदमी अपने माल का अढ़ाई प्रतिशत हिस्सा ज़कात के रूप में निकाल देता है तो बाक़ी का साढ़े सत्तानवे प्रतिशत हिस्सा मैल कुचैल से साफ शफ़्फ़ाफ़ हो जाता है वर्ना मैला ही रहता है। गोया कि माल का यह अढ़ाई प्रतिशत हिस्सा बाक़ी माल का मैल कुचैल है और उस की मैल कुचैल होना भी एक बड़ा कारण है कि हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम पर और बनु हाशिम के जिस ख़ानदान से हमारे नबी सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का संबंध है उस पर ज़कात की रक़म अल्लाह रब्बुल इज़ज़त ने हराम फ़रमा दी है।
ज़कात का एक दूसरा अर्थ “बढ़ोतरी ” भी है, एक आदमी अपने ” माल का अढ़ाई प्रतिशत हिस्सा जब ज़कात के रूप में निकाल में देता है तो स्पष्ट रूप से अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त उस के माल में बढ़ोतरी कर देता है । क़ुरआन-ए-करीम की सूर-ए-बक़रा की आयत नंबर 276 में अल्लाह रब्बुल इज़ज़त जो फ़रमाता है उस का अर्थ यह है कि ” अल्लाह सूद को मिटाता है औ को बढ़ाता है। “
3.आदमी जब ज़कात अदा कर देता है तो उस का माल चोरी, डकैती,आग में जलने या पानी में डूबने या किसी भी तरह बर्बाद होने से बच जाता है । अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की तिब्रानी शरीफ़ में एक हदीस है जिस का मतलब यह है कि “ज़कात अदा कर के अपने माल मज़बूत किलों में सुरक्षित कर लो
दो आवश्यक बातें
ज़कात फ़रज़ होने के संबंध में इस्लाम धर्म यह नहीं देखता है कि साल भर में आप की आय कितनी हुई, बल्कि यह देखता है कि साल भर पहले आप अगर अमीरी की निर्धारित रेखा पर थे तो साल पूरा होने पर आप की बचत कितनी है ? अगर अभी भी आप अमीरी की निर्धारित रेखा पर या उस से आगे हैं तभी आप पर ज़कात फ़र्ज़ होगी वर्ना साल भर में आय के विभिन्न स्रोतों से भले आप ने लाखों नहीं करोरों कमा लिए हों मगर साल पूरा होने पर अगर आप के आय का इतना हिस्सा जीवन की विभिन्न आवश्यक्ताओं में खर्च हो गया कि आप आर्थिक रूप से अमीरी की निर्धारित रेखा से नीचे चले आए तो आप पर ज़कात फ़र्ज नहीं होगी। अमीरी की निर्धारित रेखा का उल्लेख मैं इस से पहले कर चुका हूं। 2. आप के जो पैसे सावधि जमा खाते में या आवर्ति जमा खाते में या जीवन बीमा में या भविष्य निधि में हों या किसि पर ऐसे ऋण के रूप में हों जिस के वापस मिलने की प्रबल संभावना हो तो उन पर ज़कात तो हर साल फ़र्ज़ होगी मगर चूंकि वह आप के क़ब्ज़े में नहीं हैं इस लिए उन पर हर साल की ज़कात की अदायगी तब फ़र्ज़ होगी जब वो आप के क़ब्ज़े में आजाएं।