गोरखपुर। मुकद्दस रमज़ान के दूसरे अशरे में रोज़ेदार सुबह से ही इबादत व तिलावत शुरु कर रहे हैं, जिसका सिलसिला देर रात तक जारी रह रहा है। फ़र्ज़, वाजिब व सुन्नत नमाज़ों के अलावा तहज्जुद, इशराक, चाश्त, अव्वाबीन, सलातुल तस्बीह आदि नमाज़ें भी खूब पढ़ी जा रही हैं। सभी के सरों पर टोपी व हाथों में तस्बीह नज़र आ रही है। मिस्वाक, खजूर व इत्र का खूब इस्तेमाल हो रहा है। बंदे दिन में रोज़ा रखकर व रात में तरावीह की नमाज़ पढ़कर अल्लाह का फरमान पूरा कर रहे हैं। अल्लाह का फरमान पूरा करने के बदले में बंदों को ईद का इनाम मिलेगा। सोमवार को 16वां रोजा अल्लाह की हम्दो सना में बीता। करीब 14 घंटा 27 मिनट का लंबा रोज़ा, धूप की तपिश, गर्मी की चूभन में रोज़ेदारों का जबरदस्त इम्तिहान हो रहा है। मस्जिद खादिम हुसैन तिवारीपुर में कारी अफ़ज़ल बरकाती ने तरावीह की नमाज़ के दौरान एक क़ुरआन शरीफ़ मुकम्मल किया। छोटे क़ाज़ीपुर में हामिद हुसैन, अयान ज़ैद, मकबूल हुसैन, जमजम, नूर मोहम्मद दानिश, मोहम्मद नाजिम, सैयद शहाबुद्दीन, तबरेज ख़ान, ज़ुबैर आदि के सहयोग से सामूहिक रोज़ा इफ्तार का आयोजन हुआ। तंजीम कारवाने अहले सुन्नत की ओर से क़ुरआन शरीफ़ का उर्दू, हिंदी व अंग्रेजी तर्जुमा घरों में पहुंचाने का सिलसिला जारी है। ईद की खरीददारी शुरु हो चुकी है। 21 रमज़ान से शाह मारूफ का मशहूर बाज़ार भी शुरू हो जाएगा। घंटाघर, रेती, गीता प्रेस, गोलघर, उर्दू बाज़ार आदि जगहों से खरीददारी हो रही है।


रमज़ान का मकसद खुद को गलत काम करने से रोकने की ताकत पैदा करना है: मौलाना असलम
नूरी मस्जिद तुर्कमानपुर के इमाम मौलाना मोहम्मद असलम रज़वी ने बताया कि रमज़ान का मकसद खुद को गलत काम करने से रोकने की ताकत पैदा करना या उसे पुनर्जीवित करना है। शरीअत की जबान में इस ताकत को ‘तक़वा’ कहा जाता है। रोज़े में इंसान खुद को रोक लेता है। उसके सामने पानी होता है, लेकिन सख्त प्यास लगी होने के बावजूद रोजेदार उसे नहीं पीता। गलत बात होने के बावजूद खुद को गुस्सा होने से रोकता है। झूठ बोलने और बदनिगाही से परहेज करता है। ज़िंदगी में सारे गुनाह इसीलिए होते हैं, क्योंकि इंसान खुद को गलत काम करने से रोक नहीं पाता। सिर्फ जानकारी की कमी की वजह से अपराध नहीं होते, बल्कि जानकारी होने के बावजूद खुद पर काबू नहीं रख पाने की वजह से उससे गुनाह हो जाते हैं।