सवाल:
ज़कात फ़र्ज़ है या वाजिब,
जवाब:- ज़कात फर्ज है । उसकी फर्जीयत का इन्कार करने वाला काफ़िर और न अदा करने वाला फ़ासिक और अदायगी मे देर करने वाला गुनाहगार मरदूदुश्शहादा हैं (गवाही देने के लायक नहीं है)
सवाल:
ज़कात फ़र्ज होने की शर्तें क्या हैं?
जवाब:- चन्द शर्तें हैं, मुसलमान आकिल बालिग होना, माल बक़दरे निसाब का पूरे तौर पर मिलकियत में होना, निसाब का हाजते अस्लीया और दैन से फारिग़ होना (किसी के बकाया से फारिग होना) माले तिजारत या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुज़र जाना ।
सवाल:
सोना चांदी का निसाब क्या है और उनमें कितनी ज़कात फ़र्ज़ है ?
जवाब:- सोने का निसाब साढ़े सात तोला है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा जकात फर्ज है । और चांदी का निसाब साढ़े बावन तोला है जिसमें एक तोला तीन माशा छ : रत्ती ज़कात फर्ज है । सोना चांदी के बजाय बाज़ार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरा देना भी जाइज़ है ।
📚 बहारे शरीअत
सवाल:
क्या सोना चांदी के जेवरात में भी ज़कात वाजिब होती है?
जवाब:- हां सोना चांदी के जेवरात में भी ज़कात वाजिब होती है ।
सवाल:
तिजारती माल का निसाब क्या है ?
जवाब:- तिजारती माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना चांदी का निसाब पूरा हो तो उसके हिसाब से जकात निकाली जाए ।
सवाल:
कम से कम कितने रुपये हों के जिन पर ज़कात वाजिब होती है ?
जवाब:- अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रुपये हों के बाज़ार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रुपयों की जकात वाजिब होती है ।
सवाल:
अगर किसी के पास सोना साढ़े सात तोला से कम है और चांदी भी साढ़े बावन तोला से कम है और ना माले तिजारत है ना रुपया तो उसपर जकात फ़र्ज़ है या नहीं?
जवाब:- चांदी की क़ीमत का सोना फ़र्ज़ करने से अगर सोना का निसाब पूरा हो जाए या सोने की कीमत की चांदी फ़र्ज़ करने से चांदी का निसाब पूरा हो जाए तो उस पर ज़कात फ़र्ज़ है वरना नहीं।
📚 बहारे शरीअत
सवाल:
हाजते अस्लीया किसे कहते हैं ?
जवाब:- ज़िन्दगी बसर करने के लिए जिस चीज़ की ज़रूरत होती है जैसे जाड़े और गर्मियों में पहनने के कपड़े , खानादरी के सामान, पेशावरों के औज़ार और सवारी के लिए साईकिल और मोटर वगैरा यह सब हाजते अस्लीया में से हैं इनमें ज़कात वाजिब नहीं ।
📚 फ़तावा शामी, वगैरह
सवाल:
निसाब का दैन से फ़ारिग होने का क्या मतलब है ?
जवाब:- इसका मतलब ये है के मालिके निसाब पर किसी का बाक़ी न हो, या इतना बाक़ी हो के अगर बाक़ी अदा कर दे तो भी निसाब बाक़ी बचा रहे तो इस सूरत में ज़कात वाजिब है और अगर बाकी इतना हो के अदा कर दे तो निसाब न रहे तो इस सूरत में ज़कात वाजिब नहीं ।
📚 आलम ग़ीरी
सवाल:
माल पर पूरा साल गुज़र जाने का क्या मतलब है ?
जवाब:- इसका मतलब ये है के हाजते अस्लीया से जिस तारीख को पूरा निसाब बच गया उस तारीख से निसाब का साल शुरू हो गया फिर साले आइन्दा अगर उसी तारीख को पूरा निसाब पाया गया तो ज़कात देना वाजिब है । अगर दरमियाने साल में निसाब की कमी हो गयी तो ये कमी कुछ असर न करेगी ।
📚 बहारे शरीअत & अनवारे शरिअत, सफ़ह 119—120—121
लेखक: अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यू पी इंडिया
9675378691