मसाइल-ए-दीनीया

मसाइल-ए-ज़कात (क़िस्त 02)

मसअला: जिसके पास 7.5 तोला सोना या 52.5 तोला चांदी या इसके बराबर की रकम पर साल गुज़र गई तो ज़कात फर्ज़ हो गई।
📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 168
۞ मसलन आज 09,अप्रेल 2022,को चांदी 69125 हज़ार रू किलो है यानि 52.5 तोला चांदी जो कि 653.184 ग्राम हुई उसकी कीमत तक़रीबन 36400,रू हुई तो अगर आज यानि 07,रमज़ान को कोई इतने रूपये का मालिक है और अगले साल 06- रमज़ान को फिर उसके पास साहिबे निसाब की जो मिल्क बनती होगी उतनी रकम पाई जायेगी तो उस पर ज़कात फर्ज़ हो जायेगी अगर चे वो पूरे साल फकीर रहा हो मतलब ये कि पूरे साल कभी उसके पास निसाब के बराबर रक़म हो या ना हो मगर शुरुआत और इख़्तिताम पर अगर निसाब का मालिक हुआ तो ज़कात फर्ज़ हो गई,बाज़ लोग ये सवाल करते हैं कि उनके पास 7.5 तोला सोना नहीं है बल्कि 1 या 2 तोला सोना ही है तो क्या उनको भी ज़कात देनी होगी तो याद रखें कि अगर सिर्फ सोना रखा है और कैश कुछ नहीं है या चांदी ज़र्रा बराबर भी नहीं है और माले तिजारत भी कुछ नहीं है तब तो सोने का निसाब 7.5 तोला ही माना जायेगा यानि जब तक कि 7.5 तोला सोना नहीं होगा ज़कात फ़र्ज़ नहीं होगी लेकिन अगर सोना 0.5 तोला कुछ चाँदी कुछ कैश मौजूद है और सबका टोटल 52.5 तोला चांदी की कीमत 36400 रुपये जो आजकल के रेट से बन रही है तो ज़कात फ़र्ज़ हो गई,सोने चांदी की कीमत के ऐतबार से रक़म घटती बढ़ती रहती है।

मसअला: हाजते असलिया यानि रहने का घर,पहनने के कपड़े,किताबें,सफर के लिए सवारियां,घरेलु सामान पर ज़कात फर्ज़ नहीं है।
📕 फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 160
۞ एसी-फ्रिज-बाईक-फोर व्हीलर ये सब हाजते असलिया में दाखिल हैं, इसी तरह किसी के पास कई मकान हैं और वो सब उसके खुद के रहने के लिए है तो ज़कात नहीं लेकिन अगर किसी मकान में किरायेदार को बसा दिया और उसका किराया इतना है कि ये साहिबे निसाब को पहुंच जाये तो किराये पर ज़कात फर्ज़ होगी,उसी तरह दुकान पर तो ज़कात नहीं है मगर उसमे भरे हुये माल की ज़कात है माल से मुराद फक़त बेचने और खरीदने का सामान है उसके काम करने का सामान नहीं मस्लन उसके औज़ार मशीनें फर्नीचर पर्सनल इस्तेमाल का सामान नहीं,लिहाज़ा सब एहतियात से जोड़कर ज़कात अदा करी जाये।

मसअला: पालिसी या f.d अपने नाम है तो ज़कात फर्ज़ है लेकिन अपनी नाबालिग औलाद को देकर उनको मालिक बना दिया या उनके नाम से फिक्स किया तो ज़कात नहीं।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 11

ये मसअला भी खूब ज़हन में रखें रुपया या सोना चांदी अगर है तो उस पर ज़कात फर्ज़ है अगर चे किसी भी काम के लिए रखा हो मसलन हज के लिए रुपया रखा है या बेटी की शादी के लिए तो अगर निसाब से ज़्यादा है तो ज़कात देनी पड़ेगी,हां एक सूरत ये है कि अगर 5 लाख रुपया बेटी की शादी के लिए फिक्स किया तो अगर अपने नाम से करेगा तो ज़कात हर साल देनी होगी और अगर अपनी बेटी के नाम से फिक्स किया तो जब तक वो नाबालिग़ रहेगी उस पैसे पर ज़कात नहीं निकलेगी मगर जैसे ही वो बालिग़ होगी उस पैसे पर ज़कात फर्ज़ हो जायेगी अगर लड़की मालिक है तो लड़की पर ज़कात फर्ज़ हो गई।

मसअला: औरतों के पास जो ज़ेवर होते हैं उनकी मालिक औरत खुद होती है तो अगर सोना चांदी मिलाकर 52.5 तोला चांदी की कीमत, आज के रेट के हिसाब से 36400,रु.बनती है तो औरत पर ज़कात फर्ज़ है,शौहर पर उसकी ज़कात नहीं शौहर चाहे तो दे और चाहे ना दे उस पर कुछ इलज़ाम नहीं,अगर शौहर अपनी बीवी के ज़ेवर की ज़कात नहीं देता तो औरत जितनी रकम ज़कात की बनती है उतने का ज़ेवर बेचकर अदा करे।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 62
📕 क्या आप जानते हैं,सफह 391

मसअला: किसी पर 1 लाख रुपए क़र्ज़ हैं उसको कहीं से 1 लाख रुपये मिल गए अगर वो अपना क़र्ज़ नहीं चुकाता तो बुरा करता है मगर अब भी उस पर ज़कात फर्ज़ नहीं है।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 15

ज़कात किसको दें और किसको नहीं मगर सबसे पहले ये मसअला ज़हन में रखें कि ज़कात में तम्लीक शर्त है मतलब ये कि जिसको ज़कात या फ़ित्रे का रुपया कपड़ा या खाना दिया जा रहा है उसे मालिक बना दिया जाये और अगर युंही ज़कात के पैसो से किसी गरीब को खाना खिलाया या ऐसे नाबालिग को दिया जो माल पर क़ब्ज़ा भी ना कर सकता हो या जानवरों-परिंदों के लिए दाना पानी का इंतेज़ाम किया तो हरगिज़ ज़कात अदा ना होगी,हाँ ज़कात के पैसे का खाना देते वक़्त ये कहा कि चाहे खाओ और चाहे ले जाओ तो अब उसको मालिक बना दिया लिहाज़ा ज़कात अदा हो जायेगी।

मसअला: सगे भाई-बहन,चाचा,मामू,खाला,फूफी,सास-ससुर,बहु-दामाद या सौतेले माँ-बाप को ज़क़ात की रक़म दी जा सकती है।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 60-64

मसअला: ज़कात,फित्रा या कफ्फारह का रुपया अपने असली मां-बाप,दादा-दादी,नाना-नानी,बेटा-बेटी,पोता-पोती,नवासा-नवासी को नहीं दे सकते।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 60

मसअला: कफन दफन में तामीरे मस्जिद में मिलादे पाक की महफिल में ज़कात का रुपया खर्च नहीं कर सकते किया तो ज़कात अदा नहीं होगी।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 24

मसअला: अफज़ल है कि ज़कात पहले अपने अज़ीज़ हाजतमंदों को दें दिल में नियत ज़कात हो और उन्हें तोहफा या क़र्ज़ कहकर भी देंगे तो ज़कात अदा हो जायेगी।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 24

मसअला: अफज़ल है कि ज़कात व फितरे की रक़म जिसको भी दें तो कम से कम इतना दें कि उसे उस दिन किसी और से सवाल की हाजत ना पड़े।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 66

मसअला: हदीस में है कि रब तआला उसके सदक़े को क़ुबूल नहीं करता जिसके रिश्तेदार मोहताज हो और वो दूसरों पर खर्च करे।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 65

मसअला: तंदरुस्त कमाने वाले शख्स को अगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे ज़कात दे सकते हैं पर उसे खुद मांगना जायज़ नहीं।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 61

मसअला: जिसके पास खुद का मकान,दुकान,खेत या खाने का गल्ला साल भर के लिए मौजूद हो मगर वो साहिबे निसाब ना हो तो उसे ज़कात व फित्रा दे सकते हैं।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 62

मसअला: काफिर व बदमज़हब को ज़कात-फित्रा-हदिया-तोहफा कुछ भी देना नाजायज़ है अगर उनको ज़क़ात व फितरे की रकम दी तो अदा ना होगी
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 63-65

सुन्नी मदारिस को ज़कात व फित्रा दे सकते हैं मगर वहाबी देवबंदी क़ादियानी खारजी शिया अहले हदीस जमाते इस्लामी वाले व इन बदअक़ीदों के मदारिस को ज़कात व फित्रा नहीं दे सकते अगर देंगे तो अदा नहीं होगी।

मसअला: बाप अपनी बालिग़ औलाद की तरफ से या शौहर बीवी की तरफ से ज़कात या सदक़ये फित्र देना चाहे तो बगैर उनकी इजाज़त के नहीं दे सकता।
📕 फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88

मसअला: ज़कात व फित्रा बनी हाशिम यानि कि सय्यदों को नहीं दे सकते।
📕 बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 63

अगर कोई सय्यद साहब परेशान हाल हैं तो उनकी मदद करना मुसलमान पर ज़रूरी है उनकी मदद अपने असली माल से करें ज़कात व फित्रा से नहीं।

والله تعالیٰ اعلم بالصواب

लेखक: क़ारी मुजीबुर्रह़मान क़ादरी शाहसलीमपुरी, बहराइच शरीफ यू०पी०

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