हदीस शरीफ़:
बैहक़ी अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी के रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं:
रोज़ा दार की दुआ इफ़्तार के वक्त़ रद्द नहीं की जाती।
हदीस शरीफ़:
इमाम अहमद व तिरमिज़ी व इब्ने माजा व इब्ने ख़ुज़ैमा व इब्ने हब्बान अबू हुरैरह रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रिवायत करते हैं रसूलल्लाह सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम फरमाते हैं:
तीन शख़्स की दुआ रद्द नहीं की जाती रोज़ा दार जिस वक़्त इफ़्तार करता है और बादशाहे आदिल और मज़लूम की दुआ इसको अल्लाह तआला अबर से ऊपर बुलंद करता है और इसके लिए आसमान के दरवाज़े खोले जाते हैं और रब अज़्ज़ा व जल्ल फरमाता है मुझे अपनी इज़्ज़त व जलाल की क़सम ज़रूर तेरी मदद करूंगा अगरचे थोड़े ज़माना बाद (यानी कुछ दिन बाद)।
हदीस शरीफ़:
इब्ने हब्बान व बहक़ी अबू सईद ख़ुदरी रज़िअल्लाहू तआला अन्ह से रावी के
नबी सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं:
जिसने रमज़ान का रोज़ा रखा और उसकी हुदूद (हदों) को पहचाना और जिस चीज़ से बचना चाहिए उससे बचा तो जो पहले कर चुका है उसका कफ़्फ़ारा हो गया।
हदीस शरीफ़:
इब्ने माजा इब्ने अब्बास रज़िअल्लाहू तआला अन्हुमा से रावी के हुज़ूरे अक़दस सल्लल्लाहू तआला अलैही वसल्लम फ़रमाते हैं:
जिसने मक्का में माहे रमज़ान पाया और रोज़ा रखा और रात में जितना मयस्सर आया क़याम किया (नमाज़ पढ़ी) तो अल्लाह तआला उसके लिए और जगह के एक लाख रमज़ान का सवाब लिखेगा और हर दिन एक गर्दन आज़ाद करने का सवाब और हर रात एक गर्दन आज़ाद करने का सवाब और हर रोज़ जिहाद में घोड़े पर सवार कर देने का सवाब और हर दिन में हसना (नेकी) और हर रात में हसना (नेकी) लिखेगा।
हदीस शरीफ़:
बैहक़ी जाबिर इब्ने अब्दुल्ला रज़िअल्लाहु तआला अन्हुमा से रावी के रसूलल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम फ़रमाते हैं:
मेरी उम्मत को माहे रमज़ान में पांच बातें दी गईं जो मुझसे पहले किसी नबी को न मिलीं अव्वल ये के जब रमज़ान की पहली रात होती है अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल उनकी तरफ़ नज़रे रहमत फ़रमाता है और जिसकी तरफ़ नज़रे रहमत फ़रमाएगा उसे कभी अज़ाब न करेगा दूसरी ये के शाम के वक़्त उनके मुंह की बू अल्लाह तआला के नज़दीक मुश्क से ज़्यादा अच्छी है तीसरी ये के हर दिन और रात में फ़रिश्ते उनके लिए इस्तिग़फ़ार करते है, चौथी ये के अल्लाह अज़्ज़ा व जल्ल जन्नत को हुक्म फ़रमाता है कहता है मुस्तअद (तैयार) हो जा और मेरे बन्दों के लिए मुज़य्यन होजा (सज जा) क़रीब है के दुनियां की तअब (सख्ती) से यहाँ आकर आराम करें!पाँचवीं ये के जब आख़िर रात होती है तो उन सबकी मग़फ़िरत फ़रमा देता है। किसी ने अर्ज़ की क्या वो शबे क़द्र है। फ़रमाया नहीं क्या तू नहीं देखता के काम करने वाले काम करते है जब काम से फ़ारिग होते हैं उस वक़्त मज़दूरी पाते हैं।
📚 बहारे शरिअत हिस्सा 5, सफ़ह 96—97) पुराना एडीसन मतबूआ क़ादरी किताब घर बरेली शरीफ़)
Next……
लेखक: मुफ़्ती मुहम्मद ज़ुल्फ़ुक़ार ख़ान नईमी
अब्दुल्लाह रज़वी क़ादरी, मुरादाबाद यू०पी०, इंडिया