मसाइल-ए-दीनीया

रोज़ा के अहम और ज़रूरी मसाइल

मसअला: भूल कर खाने पीने या जिमआ करने से रोज़ा नहीं टूटेगा। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112)

मसअला: बिला कस्द हलक में मक्खी धुआं गर्दो गुबार कुछ भी गया रोज़ा नहीं टूटेगा। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 112)

मसअला: बाल या दाढ़ी में तेल लगाने से या सुरमा लगाने से या खुशबू सूंघने से रोज़ा नहीं टूटता अगर चे सुरमे का रंग थूक में दिखाई भी दे तब भी नहीं। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113)

मसअला: कान में पानी जाने से तो रोज़ा नहीं टूटा मगर तेल चला गया या जानबूझकर डाला तो टूट जायेगा। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117)

मसअला: एहतेलाम यानि नाइट फाल हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा मगर बीवी को चूमा और इंजाल हो गया तो रोज़ा टूट गया युंहि हाथ से मनी निकालने से भी रोज़ा टूट जायेगा। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117)

मसअला: तिल या तिल के बराबर कोई भी चीज़ चबाकर निगल गया और मज़ा हलक में महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा और अगर मज़ा महसूस हुआ या बगैर चबाये निगल गया तो टूट गया और अब क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 114,122)

मसअला: आंसू मुंह में गया और हलक़ से उतर गया तो अगर 1-2 क़तरे हैं तो रोज़ा ना गया लेकिन पूरे मुंह में नमकीनी महसूस हुई तो टूट गया। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117)

मसअला: बिला इख्तियार उलटी हो गयी तो चाहे मुंह भरकर ही क्यों ना हो रोज़ा नहीं टूटेगा। (फतावा आलमगीरी,जिल्द 1,सफह 190)
(बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 121)

मसअला: कुल्ली करने में पानी हलक़ से नीचे उतरा या नाक से पानी चढ़ाने में दिमाग तक पहुंच गया अगर रोज़ा होना याद था तो टूट गया वरना नहीं। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 117)

मसअला: पान,तम्बाकू,सिगरेट,बीड़ी,हुक्का खाने पीने से रोज़ा टूट जायेगा। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 116)

मसअला: जानबूझकर अगरबत्ती का धुआं खींचा या नाक से दवा चढ़ाई या कसदन कुछ भी निगल गया तो रोज़ा टूट गया। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113,114,117)

मसअला: इंजेक्शन चाहे गोश्त में लगे या नस में रोज़ा नहीं टूटेगा मगर उसमें अलकोहल होता है इसलिए जितना हो सके बचा जाये। (फतावा अफज़लुल मदारिस,सफह 88)

मसअला: पूरा दिन नापाक रहने से रोज़ा नहीं जाता मगर जानबूझकर 1 वक़्त की नमाज़ खो देना हराम है। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 113)

मसअला: झूट,चुगली,ग़ीबत,गाली गलौच,बद नज़री व दीगर गुनाह के कामों से रोज़ा मकरूह होता है लेकिन टूटेगा नहीं। (जन्नती ज़ेवर,सफह 264)

मसअला: रोज़ा तोड़ने का कफ्फारह उस वक़्त है जबकि नियत रात से की हो अगर सूरज निकलने के बाद नियत की तो सिर्फ क़ज़ा है कफ्फारह नहीं। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 120)

मसअला: कफ्फारये रोज़ा ये है कि लगातार 60 रोज़े रखे बीच में अगर 1 भी छूटा तो फिर 60 रखना पड़ेगा या 60 मिस्कीन को दोनों वक़्त पेट भर खाना खिलाये या 1 ही फकीर को दोनों वक़्त 60 दिन तक खाना खिलाये या इसके बराबर रक़म सदक़ा करे। (बहारे शरीअत,हिस्सा 5,सफह 123)

मसअला: मुबालग़े के साथ इस्तिंजा किया और हकना रखने की जगह तक पानी पहुंच गया रोज़ा टूट गया। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116)
۞ पाखाने के सुर्ख मक़ाम तक पानी पहुंचा तो रोज़ा टूट जायेगा लिहाज़ा बड़ा इस्तिंजा करने में इस बात का ख्याल रखें कि फ़ारिग होने के बाद जब मक़ाम धुलना हो तो चंद सिकंड के लिये सांस को रोक लिया जाये ताकि मक़ाम बंद हो जाये अब जल्दी जल्दी धोकर पानी पूरी तरह से पोंछ लिया जाये क्योंकि अगर पानी के क़तरे वहां रह गये और खड़े होने में वो क़तरे अंदर चले गये तो रोज़ा टूट जायेगा,इसीलिए आलाहज़रत अज़ीमुल बरकत रज़ियल्लाहु तआला अन्हु फरमाते हैं कि रमज़ान भर बैतुल खला एक कपड़ा साथ लेकर जायें जिससे कि आज़ा के पानी को खड़े होने से पहले सुखा सकें।

मसअला: औरत का बोसा लिया मगर इंज़ाल ना हुआ तो रोज़ा नहीं टूटा युंही अगर औरत सामने हैं और जिमअ के ख्याल से ही इंज़ाल हो गया तब भी रोज़ा नहीं टूटा। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 113)

मसअला: औरत ने मर्द को छुआ और मर्द को इंज़ाल हो गया रोज़ा ना टूटा और मर्द ने औरत को कपड़े के ऊपर से छुआ और उसके बदन की गर्मी महसूस ना हुई तो अगर इंज़ाल हो भी गया तब भी रोज़ा ना टूटा। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117)

मसअला: औरत ने मर्द को सोहबत करने पर मजबूर किया तो औरत पर क़ज़ा के साथ कफ्फारह भी वाजिब है मर्द पर सिर्फ क़ज़ा। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 122)

मसअला: औरत को मुयय्यन तारीख पर हैज़ आता था आज हैज़ आने का दिन था उसने कस्दन रोज़ा तोड़ दिया मगर हैज़ ना आया तो कफ्फारह नहीं सिर्फ क़ज़ा करेगी युंही सुबह होने के बाद पाक हुई और नियत कर ली तो आज का रोज़ा नहीं होगा। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 123/119)

मसअला: कोई चीज़ खरीदी और चखना ज़रूरी है कि अगर ना चखेगा तो नुकसान होगा तो इजाज़त है कि चख ले युंही शौहर बद मिज़ाज है कि नमक वगैरह की कमी बेशी पर चीखता चिल्लाता है तो औरत को हुक्म है कि नमक चख ले मगर चखने से मुराद ये है कि ज़बान पर रखकर मज़ा महसूस करके फौरन थूक दे वरना अगर निगल लिया तो रोज़ा जाता रहा बल्कि अगर शरायत पाये गये तो कफ्फारह भी लाज़िम होगा। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125)

मसअला: रमज़ान के दिनों में ऐसा काम करना जायज़ नहीं जिससे रोज़ा ना रख सके बल्कि हुक्म ये है कि अगर रोज़ा रखेगा और कमज़ोरी महसूस होगी और खड़े होकर नमाज़ ना पढ़ सकेगा तो भी रोज़ा रखे और बैठ कर नमाज़ पढ़े लेकिन ये तब ही है जब कि बिल्कुल ही खड़ा ना हो सके वरना बैठकर नमाज़ ना होगी। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126)
۞ मगर मआज़ अल्लाह आज की अवाम का ख्याल तो ये है कि रमज़ान इबादत के लिए नहीं बल्कि कमाने के लिए आता है 10 घंटा काम करने वाला 12 घंटे काम करता है 12 घंटे वाला 16 घंटा और कुछ तो रातो दिन पैसा कमाने में जुट जाते हैं जबकि हुक्म तो ये है कि नान-बाई मजदूर और हर मेहनत कश आदमी सिर्फ आधे दिन ही काम करे और आधे दिन आराम करे ताकि रोज़ा रख सके,मगर मआज़ अल्लाह सुम्मा मआज़ अल्लाह आजके नाम निहाद मुसलमानो को ना तो रोज़े की खबर है और ना नमाज़ की फिक्र दिन भर उसी तरह खाना पीना जैसे कि कोई बात ही नहीं और उस पर तुर्रा ये कि हम मुसलमान हैं जन्नती हैं अगर दीन पर बात आई तो जान दे देंगे सर कटा देंगे अरे जिन कमबख़्तों से दिन भर भूखा प्यासा नहीं रहा जाता वो गर्दन क्या खाक कटायेंगे,मौला ऐसों को हिदायत अता फरमाये।

मसअला: दांतों में कोई चीज़ फंसी रह गयी तो अगर वो बगैर थूक की मदद से हलक़ से नीचे उतर सकती है और निगल गया तो रोज़ा टूट गया और इतनी खफ़ीफ़ है कि थूक के साथ ही उतर सकती है और निगला तो नहीं टूटा युंही मुंह से खून निकला और हलक़ से उतरा तो अगर मज़ा महसूस हुआ तो रोज़ा टूट गया और अगर खून कम था या मज़ा महसूस ना हुआ तो नहीं टूटा। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 116)

मसअला: डोरा बट रहा था बार बार तर करने के लिए मुंह से गुज़ारा तो अगर उसकी रंगत या मज़ा महसूस ना हुआ तो रोज़ा नहीं गया लेकिन डोरे की रतूबत अगर थूक के ज़रिये निगला तो रोज़ा टूट गया। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 117)

मसअला: ये गुमान था कि अभी सुबह नहीं हुई और खाया पिया या जिमअ किया और बाद को मालूम हुआ कि सुबह हो चुकी थी या किसी ने जबरन खिलाया तो इन सूरतों में सिर्फ क़ज़ा है कफ़्फ़ारह नहीं। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118)

मसअला: नाइटफॉल हुआ और उसे मालूम था कि रोज़ा नहीं टूटा फिर उसके बाद खाया पिया तो अब कफ्फारह लाज़िम है। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 121)

मसअला: अगर किसी का रोज़ा गलती से टूट जाए तो फिर भी उसे मग़रिब तक कुछ भी खाना पीना जायज़ नहीं है पूरा दिन मिस्ल रोज़े के ही गुज़ारना वाजिब है युंही जो शख्स रमज़ान में खुले आम खाये पिये हुक्म है कि उसे क़त्ल किया जाये। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 118/119)

मसअला: रोज़ेदार वुज़ू में कुल्ली करने और नाक में पानी चढ़ाने में मुबालग़ा ना करे। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126)
۞ मतलब ये कि इतना पानी मुंह में ना भर ले कि हलक़ तक पहुंच जाये या नाक में इतना ना चढ़ाये कि दिमाग़ तक पहुंच जाये वरना रोज़ा टूट जायेगा,एक मसअला ये भी ज़हन में रखें कि अगर कोई रात को जुनुब हुआ यानि ग़ुस्ल फर्ज़ हुआ तो बेहतर है कि सहरी के वक़्त ही ग़ुस्ल करले और अगर नहीं किया यानि वक़्ते सहर खत्म हो गया तो अब ग़ुस्ल के 3 फरायज़ में से 2 उस पर से साकित हो गया यानि कुल्ली इस तरह करना कि हलक़ तक पानी पहुंच जाये और नाक की नर्म हड्डी तक पानी चढ़ाना ये दोनों माफ है अब बस सर से लेकर पैर तक एक बाल बराबर भी सूखा ना रहने पाये इस तरह पानी बहाले पाक हो जायेगा।

मसअला: सहरी खाने में देर करना मुस्तहब है मगर इतनी देर ना करें कि वक़्ते सहर ही खत्म हो जाये युंही अफ्तार में जल्दी करना भी मुस्तहब है मगर इतनी जल्दी भी ना हो कि सूरज ही ग़ुरूब ना हुआ हो। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 126)
۞ कुछ लोग अज़ान को ही खत्मे सहर समझते हैं ये उनकी गलत फहमी है मसलन आज इलाहाबाद में खत्मे सहर 3:46 पर था तो कम से कम एहतियातन 3 मिनट पहले यानि 3:43 पर ही खाना पीना छोड़ दें युंही अगर फज्र पढ़नी हो तो कम से कम एहतियातन 3 मिनट और जोड़ दें यानि 3:49 पर फज्र पढ़ सकते हैं,अगर खत्मे सहर के बाद अगर एक बूंद पानी या एक दाना भी मुंह में डाला तो रोज़ा शुरू ही नहीं होगा अगर चे अभी अज़ान हुई हो या न हुई हो अगर चे वो नियत भी करले और दिन भर मिस्ल रोज़ा भूखा प्यासा भी रहे,लिहाज़ा वक़्त का लिहाज़ करें।

मसअला: मिस्वाक करना सुन्नत है अगर चे खुश्क हो या पानी से तर हो अगर चे हलक़ में उसकी कड़वाहट महसूस भी होती हो। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125)

मसअला: रोज़े की हालत में मियां बीवी का एक दूसरे के बदन को छूना चूमना गले लगाना मकरूह है अगर बगैर सोहबत किये भी इंज़ाल हुआ तो रोज़ा टूट जायेगा और सोहबत की तो कफ्फारह वाजिब। (बहारे शरीयत,हिस्सा 5,सफह 125)

मसअला: अफ्तार के वक़्त जो दुआ पढ़ी जाती है वो एक दो लुक़्मा खाने बाद ही पढ़ी जाये बिस्मिल्लाह शरीफ के साथ रोज़ा खोलें फिर दुआ पढ़ें। (फतावा रज़वियह,जिल्द 1,सफह 13)

मसअला: शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की इजाज़त है बाद रमज़ान रोज़ों की कज़ा करे,ये शरई उज़्र हैं 1. बीमारी 2. सफर 3. औरत को हमल हो या दूध पिलाने की मुद्दत में हो 4. सख्त बुढ़ापा 5. बेहद कमज़ोरी 6. जान जाने का डर। (दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115 & बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 130)

मसअला: इनमे से शैखे फानी यानि बहुत ज्यादा बूढ़ा और ऐसा बीमार जिसके ठीक होने की उम्मीद ना हो वो लोग अगर रोज़ा ना रख सकें तो उन्हें हर रोज़े के बदले 2 kg 47 ग्राम गेंहू की कीमत यानि 55 rs. फिदिया अदा करना होगा। (दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 119)

मसअला: शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखा और फिदिया देता रहा मगर अगला रमजान आने से पहले उसका उज़्र जाता रहा तो अब रोज़ो की क़ज़ा फर्ज़ है उसके सारे फिदिए नफ्ल हो गए। (दुर्रे मुख्तार,जिल्द 2,सफह 115 & बहारे शरियत,हिस्सा 5,सफह 133)
۞ जिन लोगों को शरई उज़्र की वजह से रोज़ा ना रखने की मोहलत है उन्हें भी अलानिया खाने पीने की इजाज़त नहीं है युंहि जिन लोगो का रोज़ा किसी गलती की वजह से टूट गया है उन्हे भी मग़रिब तक कुछ भी खाने पीने कि इजाज़त नहीं है लिहाज़ा इसका ख्याल रखें।

लेखक: नौशाद अहमद ज़ैब रज़वी

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