कविता

ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

ऐ नए साल बता, तुझमें नयापन क्या है
हर तरफ़ ख़ल्क़ ने क्यूँ शोर मचा रक्खा है!

रौशनी दिन की वही, तारों भरी रात वही
आज हमको नज़र आती है हर इक बात वही!

आसमाँ बदला है, अफ़सोस, ना बदली है ज़मीं
एक हिंदसे का बदलना कोई जिद्दत तो नहीं!

अगले बरसों की तरह होंगे क़रीने तेरे
किसको मालूम नहीं बारह महीने तेरे!

जनवरी, फ़रवरी और मार्च पड़ेगी सर्दी
और अप्रैल, मई, जून में होगी गर्मी!

तेरा मन दहर में कुछ खोएगा, कुछ पाएगा
अपनी मीआद बसर करके चला जाएगा!

तू नया है तो दिखा सुबह नयी, शाम नयी
वरना इन आँखों ने देखे हैं नए साल कई

बेसबब देते हैं क्यूँ लोग मुबारकबादें
ग़ालिबन भूल गए वक़्त की कड़वी यादें

तेरी आमद से घटी उम्र जहाँ में सब की
‘फ़ैज़’ ने लिक्खी है यह नज़्म निराले ढब की


ख़ल्क़ – दुनिया / जनता / अवाम
हिंदसे – संख्या / अदद / गणित
जिद्दत – अनूठापन / अद्वितीयता / नयापन
अगले – पिछले / गुज़रे हुए
क़रीने – ढंग / तर्ज़ / शिष्टता / तमीज़ / क्रम / तर्तीब / प्रसंग
दहर – काल / समय / वक़्त / युग
मीआद – मियाद / समय / काल / वक़्त / निश्चित काल / अवधि / मुद्दत
बेसबब – अकारण / बेवजह
ग़ालिबन – शायद / संभवतः / निश्चित / यक़ीनन
आमद – आना / आगमन
ढब – तरीक़ा।

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