गोरखपुर

इस्लाम पाकीज़ा समाज को वज़ूद में लाने वाला दीन है: उलमा-ए-किराम

ग़ौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर के बाहर जलसा-ए-ग़ौसुलवरा

गोरखपुर। ग़ौसिया नौज़वान कमेटी की ओर से ग़ौसिया मस्जिद छोटे काजीपुर के बाहर सोमवार को जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। आगाज़ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुआ। नात व मनकबत पेश की गई।

मुख्य अतिथि संतकबीरनगर के शहर क़ाज़ी मुफ़्ती मोहम्मद अख़्तर हुसैन अलीमी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम में तमाम नबियों पर ईमान लाने के साथ इस बात पर भी ईमान लाना ज़रूरी है कि पिछली शरीअतें खत्म हो चुकी हैं, लिहाज़ा दीन-ए-इस्लाम पर अमल करना दोनों जहाँ की कामयाबी के लिए ज़रूरी है। दीन-ए-इस्लाम में ज़िन्दगी के लिए एक मुकम्मल निज़ाम है। दीन-ए-इस्लाम की एक ख़ूबी यह भी है कि इस्लाम ने ईमानियात, इबादात, मुआमलात और मुआशरत में पूरी ज़िन्दगी के लिए इस तरह रहनुमाई की है कि हर शख़्स चौबीस घंटे की ज़िन्दगी का एक-एक लम्हा अल्लाह की तालीमात के मुताबिक अपने नबी-ए-पाक हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के तरीक़े पर गुज़ार सके। दीन-ए-इस्लाम में खाने, पीने, सोने यहाँ तक कि इस्तिंजा करने का तरीक़ा भी बताया गया है। रास्ता चलने के आदाब भी बयान किए गए हैं। अल्लाह के हुक़ूम के साथ-साथ बन्दों के हुक़ूक़ की तफ़सीलात से आगाह करके उनको अदा करने की बार-बार ताकीद की गई है।

जलसे की एक झलक

अध्यक्षता करते हुए मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम ने नाप तोल में कमी, सूद, रिश्वत, जुआ, शराब और दूसरी नशे वाली चीज़ों को हराम क़रार दिया है, ताकि इन हलाक करने वाली बीमारियों से बचकर एक अच्छे व पाक साफ़ समाज को वजूद में लाया जा सके। झूट, ग़ीबत, बुरी बात, किसी शख़्स को गाली या धोखा देना, तकब्बुर, फु़ज़ूलख़र्ची जैसी आम बुराइयों को ख़त्म करने की ख़ुसूसी तालीमात दी गई है। औरत की हिफ़ाज़त के लिए शौहर या मेहरम के बग़ैर औरतों को सफ़र करने से मना किया। इस्लाम हर शख़्स के सामान की हिफ़ाज़त करता है, चुनांचे चोरी, डकैती या किसी के माल को नाहक़ लेने को हराम करार दिया है।

विशिष्ट वक्ता मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम गरीबों, मिसकीनों और ज़रूरतमंदो का पूरा ख़याल रखता है, चुनांचे मालदारों पर ज़कात व सदक़ात को वाजिब करने के साथ यतीम और बेवाओं की किफ़ालत करने की बार-बार तालीम दी गई। इस्लाम ने ज़कात का ऐसा निज़ाम क़ायम किया है कि दौलत चन्द घरों में सिमट कर न रह जाए। ग़रीब लोगों के ग़म में शरीक होने के लिये रोज़े फ़र्ज़ किए, ताकि भूक प्यास की सख़्ती का एहसास हो। अल्लाह तआला की अज़ीम नेमतों जैसे पानी, आग और हवा की क़द्र करने की तालीम दी गई। दीन-ए-इस्लाम की अच्छाइयों और ख़ूबियों को बयान करने के लिए किताबें लिखी जानी चाहिए, लेकिन मैंने मुख़्तसर तौर पर दीन-ए-इस्लाम की कुछ अच्छाइयाँ व ख़ूबियाँ ज़िक्र करने की कोशिश की है।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति की दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। जलसे में मोहम्मद अफरोज क़ादरी, अहसान शाकिर, मौलाना दिलशाद अहमद, हाफ़िज़ शेर नबी, कारी शमसुद्दीन, हसन रज़ा, कारी अंसारुल हक़, कारी मो. अयूब, सैयद शहाबुद्दीन, नूर मोहम्मद दानिश, मोहम्मद नाज़िम, मौलाना गुलाम दस्तगीर, कारी मो. मोहसिन रज़ा, रईस अनवर, नूर मो. वारसी आदि ने शिरकत की।

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