गोरखपुर

इमाम हसन व मुजद्दिद अल्फसानी को शिद्दत से किया गया याद

गोरखपुर। हज़रत सैयदना इमाम हसन रदियल्लाहु अन्हु के शहादत दिवस व इमाम रब्बानी मुजद्दिद अल्फसानी हज़रत शैख़ अहमद फ़ारूक़ी सरहिन्दी अलैहिर्रहमां के उर्स-ए-मुबारक पर बुधवार को घरों में कुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी की गई।

तुर्कमानपुर में महफिल दुआ-ए-शिफा हुई। क़ुरआन ख़्वानी की गई। क़सीदा बुर्दा शरीफ व क़सीदा गौसिया पढ़ा गया। खत्मे क़ादरिया हुआ।

नायब काजी मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी ने कहा कि हज़रत सैयदना इमाम हसन के वालिद हज़रत सैयदना अली तथा आपकी वालिदा हज़रत फ़ातिमा ज़हरा थीं। आपका जन्म सन् तीन हिजरी में मदीना में हुआ था। आपकी सूरत पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम से बहुत अधिक मिलती थी। आपका पालन पोषण आपके माता-पिता व आपके नाना पैगंबर-ए-आज़म की देखरेख में हुआ तथा इन तीनों महान हस्तियों ने मिलकर हज़रत इमाम हसन में मानवता के समस्त गुणों को विकसित किया।

मुफ़्ती-ए-शहर मुफ़्ती अख़्तर हुसैन मन्नानी ने कहा कि भलाई करना, हज़रत इमाम हसन के व्यक्तित्व की विशेष पहचान है। हज़रत इमाम हसन वंचितों और पीड़ितों की आशा की किरण थे। हजरत इमाम हसन बहुत अधिक नैतिकता और इंसानी गुणों के स्वामी थे, वह विनम्र, सम्मानीय, सुशील, दानी, क्षमा करने वाले और लोगों के मध्य पसंदीदा महान हस्ती थे। आपकी शहादत सफ़र माह की 28 तारीख को हुई। आपके पीने के पानी मे ज़हर मिला दिया गया था, यही ज़हर आपकी शहादत का कारण बना। आपको जन्नतुल बक़ी नामक कब्रिस्तान में दफ़्न किया गया।

हाफ़िज़ मो. शमीम क़ादरी व हाफ़िज़ आमिर हुसैन निज़ामी ने कहा कि इमाम रब्बानी मुजद्दिद अल्फसानी हज़रत शैख़ अहमद फ़ारूक़ी सरहिन्दी 16वीं और 17वीं शताब्दी के एक विख्यात भारतीय सूफ़ी विद्वान थे। आपका सम्बन्ध हनफ़ी विचारधारा और नक़्शबन्दी सूफ़ी सम्प्रदाय से था। आप सरहिंद (पंजाब) के एक गांव में पैदा हुए।

हाफ़िज़़ महमूद रज़ा क़ादरी व हाफ़िज़ रहमत अली निज़ामी ने कहा कि इमाम रब्बानी ने बादशाह अकबर व जहांगीर की झूठी विचारधारा का विरोध किया और दोनों बादशाहों के गुरूर को मिट्टी में मिला दिया। अापने दीन-ए-इस्लाम की सही शिक्षा लोगों तक पहुंचायी। बादशाह अकबर के दीन-ए-इलाही को जमीन के नीचे दफ़्न कर दिया। बादशाह जहांगीर ने बाद में तौबा की और दीन-ए-इस्लाम की तरक्की में लगा रहा। मुजद्दिद अल्फसानी ने हिंद के मुसलमानों के ईमान की हिफ़ाजत की और इस्लाम को नयीं ताकत दी। भारतीय उपमहाद्वीप में फैली नक़्शबन्दी विचारधारा को आपने फरोग दिया। आपने हमेशा हक बोला, हक लिखा। आप पैेगंबर-ए-आज़म, सहाबा व अहले बैत के सच्चे आशिक थे। आप बहुत परेहजगार व इबादतगुजार थे। आपका विसाल 28 सफर 1034 हिजरी में हुआ।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। कारी मो. अनस रज़वी, हाफ़िज़ नज़रे आलम क़ादरी, मो. सुलेमान अली, निज़ामुद्दीन, सरवर अली, दानिश रज़ा अशरफी, कारी मो. अनीस, अफरोज क़ादरी, मौलाना तफज़्ज़ुल हुसैन रज़वी, हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी, हाफ़िज़ सद्दाम हुसैन, कासिद इस्माइली, कारी अनीस, शादाब अहमद रज़वी, हाफ़िज़ मो. अशरफ़, हाफ़िज़ आफताब, मौलाना शेर मोहम्मद क़ादरी सहित तमाम लोग मौजूद रहे।

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