गोरखपुर

हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ, हज़रत तमीम अंसारी व मुफ़्ती मुजीब अशरफ का मनाया उर्स

गोरखपुर। शाही जामा मस्जिद तकिया कवलदह में रविवार को सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना अब्दुर्रहमान बिन औफ रदियल्लाहु अन्हु, सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना तमीम अल अंसारी रदियल्लाहु अन्हु व अशरफुल फुकहा हज़रत मुफ़्ती मो. मुजीब अशरफ क़ादरी अलैहिर्रहमां का उर्स-ए-पाक अकीदत व एहतराम के साथ मनाया गया। क़ुरआन ख़्वानी, फातिहा ख़्वानी व दुआ ख़्वानी के जरिए अकीदत का नज़राना पेश किया गया।

मकतब इस्लामियात के शिक्षक कारी मो. अनस रज़वी ने कहा कि सहाबी-ए-रसूल हज़रत अब्दुर्रहमान बिन औफ मक्का शरीफ में पैदा हुए। आपके वालिद का नाम औफ व वालिदा का नाम शिफ्फा है। आप दीन-ए-इस्लाम कबूल करने वाले अव्वल सहाबा किराम में शामिल हैं। आप तिजारत करते थे। पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम ने आपको आपकी ज़िन्दगी में ही जन्नती होने की खुशख़बरी दी। आपकी सखावत बेमिसाल थी।आपका इल्म, हुस्नों अख़लाक, सखावत और इबादत मशहूर है। आप बड़े आबिद, ज़ाहिद, पाक सीरत और बुज़ुर्ग सहाबी थे। आपने जंगे बद्र, जंगे उहद व दीगर जंगों में शामिल होकर बहुत बहादुरी दिखाई। आपका विसाल 14 ज़िल हिज्जा 33 हिजरी में हुआ। आपका मजार अम्मान, जॉर्डन में है।

हाफ़िज़ आरिफ ने कहा कि सहाबी-ए-रसूल हज़रत सैयदना तमीम अल अंसारी मदीना शरीफ में पैदा हुए। ऐलाने नबूवत के कुछ अर्से बाद आप मक्का शरीफ तशरीफ ले गए और पैगंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहो अलैहि वसल्लम की बारगाह में हाजिर होकर दीन-ए-इस्लाम में दाखिल हुए। आप जंगे बद्र में शामिल होने वाले 313 सहाबा किराम में से हैं। पैगंबर-ए-आज़म ने आपको अंगूठी अता फरमाई और आलम-उल-जिन्न में तालीमे दीन के लिए भेजा। आप जिन्नात के साथ पांच साल तक रहे। हज़रत सैयदना उमर रदियल्लाहु अन्हु के ज़माने में आप सिंध तशरीफ लाये और 18 साल तक ठहरे और तालीमे करते रहे। आपके विसाल के बाद आपके साथियों ने आपकी वसीयत के मुताबिक आपका जिस्म एक संदूक में रख दिया और एक ख़त में आपके बारे में लिखकर उसे उसी संदूक में रख दिया और उस संदूक को समंदर में बहा दिया। 5 साल बाद वह संदूक कुआलम, तमिलनाडु के किनारे पहुंचा। यहां लोगों ने आपकी तदफ़ीन की। आपका मजार कुआलम, तमिलनाडु में है। आपका उर्स 15 ज़िल हिज्जा को मनाया जाता है।

अनवर रज़ा अत्तारी ने कहा कि अशरफुल फुकहा हज़रत मुफ़्ती मो. मुजीब अशरफ आलिमे बाअमल व आबिदो जाहिद थे। आपकी इबादत, इल्म, हुस्नों अख़लाक और शख्सियत मशहूर है। आपने कई मदरसे व मस्जिदें कायम की। देश व विदेश में दीन-ए-इस्लाम की तबलीग की। आपने बहुत बार हज व उमरा किया। आपका विसाल 15 ज़िल हिज्जा 1441 हिजरी (6 अगस्त 2020) में हुआ। मजार नागपुर, महाराष्ट्रा में है।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर भाईचारे व हर बीमारी से शिफा की दुआ मांगी गई। उर्स में मो. कासिद, जलालुद्दीन, हाजी मो. युनूस, मो. अरमान, अफ़ज़ल खान, मो. अयान, इकराम अली, अली हसन आदि ने शिरकत की।

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