गोरखपुर

दर्स में बताए गए क़ुर्बानी के मसाइल

गोरखपुर। शाही जामा मस्जिद, तकिया कवलदह में क़ुर्बानी के मसाइल पर दर्स के दूसरे दिन हाफ़िज़ आफताब ने बताया कि क़ुर्बानी के वक्त में क़ुर्बानी करना ही लाज़िम है कोई दूसरी चीज उसके कायम मकाम नहीं हो सकती मसलन बजाए क़ुर्बानी उसने बकरी या उसकी कीमत सदका कर दी यह नाकाफी है। घर में जो भी मालिके निसाब हैं उन पर अपनी तरफ से अलग अलग क़ुर्बानी वाजिब है। एक की क़ुर्बानी सब की तरफ से काफी नहीं। नवीं ज़िल हिज्जा की फज्र से तेरहवीं की असर तक हर नमाज़े फर्ज पंजगाना के बाद जो जमाअते मुस्तहबबा के साथ अदा की गई एक बार तकबीर बुलंद आवाज से कहना वाजिब है और तीन बार अफ़ज़ल। क़ुर्बानी की जगह पर्दे का एहतमाम करें। क़ुर्बानी से निकलने वाली गलाज़त (गंदगी) किसी मुनासिब जगह गड्ढे वगैरा में दफ़्न कर दें। अलगर्ज सफाई का खास ख्याल रखें। क़ुर्बानी का गोश्त जहां तक मुमकिन हो गरीब मुसलमानों तक पहुंचाएं और उनकी खूब खिदमत करें।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। दर्स में अब्दुर्रहमान, अली हसन, हाफ़िज़ आरिफ, मो. कासिद, मो. अरमान, जलालुद्दीन आदि मौजूद रहे।

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