सवाल : – मन्नत मानना कैसा है ?
जवाब : – जाइज़ है।
सवाल : – और मन्नत का पूरा करना कैसा है ?
जवाब : – ज़रूरी है।
सवाल : – क्या हर मन्नत का पूरा करना ज़रूरी है।
जवाब : – नहीं। बल्कि ऐसी मन्नत जो खिलाफे शरीअत न हो उसका पूरा करना ज़रूरी है। और जो मन्नत शरीअत के खिलाफ हो उसका पूरा करना नाजाइज़ है।
सवाल : – क्या मस्जिद में चराग जलाने या किसी पीर या वली से मन्नत मानना मना है ?
जवाब : – नहीं। जैसे मस्जिद में चराग जलाने या ताक भरने या फलां बुजुर्ग के मजार पर चादर चढ़ाने या ग्यारहवीं शरीफ़ की नियाज़ (फ़ातिहा) दिलाने या सय्यदिना सरकार गौसुल आजम रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का तोशा या सय्यदिना सरकार गरीब नवाज़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु की नियाज़ या शाह अब्दुल हक़ रज़ियल्लाहु तआला अन्हु का तोशा करने या हज़रत जलाल बुख़ारी का कूडा करने या मुहर्रम की फ़ातिहा, या शरबत, या खिचड़ा, या सबील लगाने, या मीलाद शरीफ करने की मन्नत मानी तो यह शरी मन्नत नहीं मगर यह काम मना नहीं है, करे तो अच्छा है, अलबत्ता इसका ख्याल रहे कि कोई बात खिलाफे शरअ उस के साथ न मिलायें। और जो लोग इन बातों से मना करते हैं वह नेकियों से महरूम हैं।
📕 (इस्लामी तालीम, सफा नं. 56)