गोरखपुर। इस्लामी माह रबीउल अव्वल शरीफ का चांद रविवार 24 अगस्त की शाम देखा जाएगा। चांद नजर आने या चांद देखे जाने की गवाही मिलने पर उलमा किराम ईद मिलादुन्नबी (पैगंबर-ए-इस्लाम हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का जन्मदिवस) की तारीख का ऐलान करेंगे। यह जानकारी चिश्तिया मस्जिद बक्शीपुर के इमाम मौलाना महमूद रजा कादरी ने दी है।
उन्होंने बताया कि अगर रविवार को चांद नजर आ गया तो ईद मिलादुन्नबी शुक्रवार 5 सितंबर को मनाई जाएगी। अगर चांद नजर नहीं आया तो ईद मिलादुन्नबी शनिवार 6 सितंबर को अकीदत व एहतराम के साथ मनाई जाएगी।
इस बार पैगंबर-ए-इस्लाम के जन्मदिवस के 1500 साल मुकम्मल हो रहे हैं
सब्जपोश हाउस मस्जिद जाफरा बाजार के इमाम हाफिज रहमत अली निजामी ने बताया कि चांद नजर आने पर 5 सितंबर (12 रबीउल अव्वल शरीफ) को अल्लाह के आखिरी नबी हजरत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दुनिया में तशरीफ लाने के 1500 साल पूरे हो जायेंगें। इस बार की ईद मिलादुन्नबी हम सभी के लिए बेहद खास है। लिहाजा हमें ऐसा काम करना है जिससे पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत का हर पहलू, शिक्षा व दीन-ए-इस्लाम का पैगाम भी आम हो और समाज की सेवा भी हो सके। जुलूस में लोग इस्लामी लिबास, अमामा शरीफ व इस्लामी टोपी में बा वजू सादगी के साथ कलमा व दरूदो सलाम पढ़ते हुए शिरकत करें।
समाजसेवी नेहाल अहमद ने कहा कि ईद मिलादुन्नबी के मौके पर देशवासियों में फूल और मिठाईयां बांट कर उन्हें पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत व पैगाम से रू-ब-रू करवाएं। अपने घर की रेलिंग, बालकनी या दरवाजे के पास तमाम देशवासियों को ईद मिलादुन्नबी की मुबारकबाद पेश करते हुए पैगंबर-ए-इस्लाम वसल्लम व सहाबा किराम की सीरत पर एक हदीस या किसी दीनी पैगाम का बैनर या पोस्टर जरूर लगाएं। नि:शुल्क स्वास्थ्य शिविर लगवाया जाए। अस्पतालों में जाकर बीमारों में फल-दूध वगैरह बांटें।
मुफ्ती-ए-शहर अख्तर हुसैन ने कहा कि शरीअत के दायरे में रहकर ईद मिलादुन्नबी की खुशियां मनाएं।गाइडलाइन के मुताबिक पुरअमन तरीके से तयशुदा रास्तों से जुलूस-ए-मुहम्मदी निकालें। जिले के प्रशासनिक अधिकारियों से मिलकर उन्हें पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत व शिक्षाओं पर आधारित कोई किताब, फूल और मिठाईयों के साथ मुबारकबाद पेश करें। जुलूस में भी इस्लामी पैगाम वाले पोस्टर शामिल करें। जुलूस के रास्ते में कोई अस्पताल हो तो खामोशी से दरूदो सलाम पढ़ते हुए निकल जाएं। आवाज बिल्कुल न करें। अल्लाह की इबादत करें। कुरआन-ए-पाक की तिलावत करें। 1200 या 1500 मर्तबा दरूदो सलाम का नजराना पेश करें। रोजा रखें। जुलूस के रास्ते में कोई एंबुलेंस आ जाए तो उसे रास्ता दें।
वरिष्ठ शिक्षक आसिफ महमूद ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत नई नस्ल तक पहुंचाने के लिए निबंध लेखन व सवाल-जवाब प्रतियोगिता आयोजित की जाए। पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत व शिक्षाओं पर 1 से 12 रबीउल अव्वल तक विभिन्न मुहल्लों में पोस्टर प्रदर्शनी व नुक्कड़ सभा की जाए। पैगंबर-ए-इस्लाम की सीरत पर सेमिनार का आयोजन किया जाए। पौधारोपण कर पर्यावरण को हरा भरा करें। अपने शहर, गली व मोहल्ले को साफ रखें। अपने इलाके की मस्जिद मदरसे में एक दिन सफाई की अहमियत उजागर करते हुए सफाई मुहिम चलाएं।
मकतब इस्लामियात तुर्कमानपुर के शिक्षक कारी मुहम्मद अनस रजवी ने कहा कि पैगंबर-ए-इस्लाम की याद में गरीबों व यतीमों के बीच जाकर वक्त गुजारें, उन पर शफकत करें, कपड़ा खाना वगैरह बांटें और उनके काम आएं। गरीबों और यतीमों को खाना खिलाएं। उनके यहां राशन पहुंचाएं। पड़ोसियों का ख्याल रखें। घरों व मस्जिदों को फूल, झंडे व लाइटों से सजाएं। मस्जिदों के बाहर भी इस्लामी पैगाम वाले पोस्टर लगाएं। जुलूस-ए-मुहम्मदी में डीजे, बैंड बाजा या ढोल बिल्कुल न बजवाएं, न ही म्यूजिक वाली नात-ए-पाक व कव्वाली बजाएं और न ही आतिशबाजी करें। हुड़दंग बिल्कुल भी न करें। अमन व अमान के साथ जुलूस निकाला जाए और दीन का पैगाम आम किया जाए। जुलूस में दीनी पोस्टर या किसी मजार जैसे गुंबदे खजरा की बेहुरमती न हो इस बात का पूरा ख्याल रखा जाए। मस्जिद या मजार का माडल बिल्कुल न बनाया जाए। जुलूस की समाप्ति पर बैनर व झंडे सुरक्षित स्थानों पर रख दिए जाएं।