ऐतिहासिक स्थान

बेगम मुमताज महल: जिसकी याद में बना था ताज महल

किसी ने बहुत ही खूब कहा है कि प्यार कभी मरता नहीं है। इसका गवाह है आगरा में पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता और सफेद संगमरमर से सजा ताजमहल जो आज भी शाहजहां और मुमताज के प्यार की गवाही देता है, लेकिन प्यार तो अमर हो सकता कर लेकिन प्यार करने वाले नहीं। यही दुनिया का निजाम व दस्तूर है।

आज के दिन आपको ये सब बताने का मकसद बहुत ही खास है दरअसल आज के दिन ही 17 जून 1631 को मुगल बादशाह शाहजहां की सबसे पसंदीदा बेगम मुमताज का बुराहनपुर में 14वें बच्चे की पैदाइश के वक्त ज्यादा खून बह जाने की वजह से इंतेकाल हो गया था, पहले तो उन्हें आरजी तौर पर बुरहानपुर के एक बाग में दफन किया गया था। फिर वहां से उनकी लाश को आगरा मुंतकिल किया गया और ताजमहल की तामीर का काम मुकम्मल होने के बाद उन्हें दुनिया के सबसे खूबसूरत मकबरे में दफन कर दिया गया।

1631 का साल था, शाहजहां और मुमताज महल की शादी को 19 बरस बीत चुके थे। बीते 19 बरस में मुमताज ने 14 बच्चों (आठ बेटे और छह बेटियां) को जन्म दिया था। उनमें से सात पैदाइश के वक्त या बहुत कम उम्र में फौत हो गए थे। मुमताज की मौत के वक्त बादशाह दक्कन में एक फौजी मुहीम पर थे। उन्होंने अपनी इस मुहिम को बंद कर दिया।

शाहजहां को मलिका मुमताज की मौत का गहरा सदमा पहुंचा, वो सब कुछ छोड़ तन्हाई में रहने लगे, अरसे बाद जब वो इस गम से बाहर निकले तब तक उनके बाल सफ़ेद हो चुके थे, उनकी पीठ झुक गयी थी, और चेहरे की रौनक खत्म हो गयी थी। इस दौरान बादशाह की सबसे बड़ी बेटी जहाँआरा ने अपने वालिद को बहुत सहारा दिया, और धीरे-धीरे उन्हें इस शोक से बाहर निकाला।

दिसंबर 1631 में, मुमताज की लाश को उनके बेटे शाह शुजा, मलिका की दासी, निजी डॉक्टर और उनकी बेटियों जहांआरा बेगम और गोहरआरा बेगम की उस्ताद सती-उन-निसा बेगम और मोअज्जिज़ दरबारी वज़ीर ख़ान के साथ आगरा लाया गया था।

वहां उन्हें यमुना के किनारे एक छोटी सी इमारत में दफ़नाया गया। जनवरी 1632 में क़ब्र की जगह पर ताजमहल की तामीर शुरू हुयी।

यह एक ऐसा काम था जिसे पूरा करने में 22 साल लगने थे, अंग्रेज़ी कवि सर एडविन अर्नोल्ड ने इसके बारे में कहा है कि ‘यह वास्तुकला का एक टुकड़ा नहीं है, जैसा कि दूसरी इमारतें हैं, बल्कि एक शहंशाह की मोहब्बत का काबिलेफख्र अहसास है जो ज़िंदा पत्थरों में उभरता है।’

जाइल्स टिल्टसन के मुताबिक, इसकी खूबसूरती को मुमताज़ महल की खूबसूरती के रूपक के तौर पर भी लिया जाता है और इसी ताल्लुक़ की वजह से बहुत से लोग ताजमहल को ‘फीमेल या फेमिनिन’ कहते हैं।

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