यह मामला रायपुर छत्तीसगढ़ का है मोहर्रम में होने वाले खुराफात के खिलाफ बोलने पर गांव के लोगों ने इमाम साहब से कान पकड़ कर उठक बैठक कराया और माफी मांगने पर मजबूर किया।
यह मौलवी अपने परिवार को पालने के लिए नमाज़ पढ़ाने की नौकरी करता है। अपनी रोज़ी ख़तरे में देखकर आला हज़रत के फ़तवे बताने को अब ग़लती मानकर कान पकड़कर माफ़ी माँग रहा है।
ऐसे इमाम हमारे समाज में भरे पड़े हैं, जिनमें हक़ बोलने के बाद क़ुर्बानी का जज़्बा नहीं है और बातें दिन रात सहाबा की क़ुरबानियों की करते हैं।
मुस्लिम पब्लिक जाहिल हैं, जो एक मौलवी और इमाम से सड़क पर कान पकड़वा कर नारा ए हैदरी बोल रही है।
मौलवी आला हज़रत के फ़तवे सुनाने से पहले अपनी ताक़त देख लेता तो यूं फ़ज़ीहत न होती। अब यह ज़िंदगी भर हक़ न बोलेगा।
जाहिलियत की बीमारी जाहिल उलमाओं की ही फैलाई हुई है, सदियों से इनके कान मिम्बर से लानतान बुराई और बिद्दत की तारीफ सुनते आ रहे है, अब अचानक से इन्हे हक़ इन्हे इन्ही के मिम्बर से सुनाया जायेगा तो नतीजा ऐसा ही निकलेगा, इससे पहले भी एक विडिओ देखा जिसमें एक इमाम को तो पुलिस के ही हवाले कर दिया गया।
बहुत अफसोसनाक
डर लगता है कि कहीं अल्लाह का अजाब ना नाजिल हो जाएं इन गांव वालों पर
अकीदत के नाम पर कौम ने मौज मस्ती व मनोरंजन को दीन बना लिया है जिसका नतीजा है कौम बिद्आत व खुराफात में तबाह व बर्बाद होती जा रही है।
हक़ बात है हज़रत
गोरखपुर के जुलूस की एक फोटो सहारा अखबार में छपी है जिसमें मुर्ती बनाई गई है। आप ही बताइए कौम कहां जा रही है।
हक बात बोलने वाले उलमा किराम वैसे ही कम हैं। यह सब देखकर तो हक बात बोलेगा कौन?
جس پیغام کو پہنچانے کے لیے امام حسین رضی اللہ عنہ نے نہ صرف کٹا دیا بلکہ سارا گھرانا قربان کردیا اس پیغام کو عام کرنے کے بجائے یزیدی سنتوں کو عام کرنے کا جو رواج چل پڑا ہے وہ اب نا قابل برداشت ہوا جا رہا ہے۔ اللہ رحم کرے
Jahilon ki basti
उलमा किराम को अब यूनियन बनाकर, दो कौड़ी के जाहिल खबीसों के खिलाफ तहरीर देनी चाहिए।
Jahilon ki basti