गोरखपुर। इस्लामी माह जिलहिज्जा का चांद गुरुवार 30 जून की शाम देखा जाएगा। अगर चांद नजर आ गया तो ईद-उल-अजहा (बकरीद) पर्व 10 जुलाई को मनाया जाएगा। अगर चांद नजर नहीं आया तो पर्व 11 जुलाई को मनाया जाएगा।
गुरुवार को तंजीम उलमा-ए-अहले सुन्नत चांद देखने की कोशिश करेगी। जिलहिज्जा का चांद देखने के बाद उलमा-ए-किराम ऐलान करेंगे। इसके अलावा अगर किसी को कहीं भी चांद देखने को मिलता है तो वह मुफ्ती खुर्शीद अहमद मिस्बाही (काजी-ए-शहर) 9935892392, मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी (मुफ्ती-ए-शहर) 9956971232, मुफ्ती मो. अज़हर (नायब काजी) 8604887862/ 9598348521, मुफ्ती मेराज अहमद 73880 95737, मुफ्ती मुनव्वर रज़ा 82493 33347 के नंबरों पर सूचना दे सकते हैं। आख़िरी ऐलान उलमा-ए-अहले सुन्नत चांद की तस्दीक के बाद ही करेंगे।
क़ुरआन में है कुर्बानी करने का हुक्म: मुफ्ती-ए-शहर
मुफ्ती अख्तर हुसैन मन्नानी (मुफ्ती-ए-शहर) ने बताया कि दीन-ए-इस्लाम में कुर्बानियों का महत्वपूर्ण स्थान है। अजमत-ए-इस्लाम व मुस्लिम कुर्बानी में है। उसी में से एक ईद-उल-अजहा पर्व है, जो माहे जिलहिज्जा का चांद देखे जाने पर 10 या 11 जुलाई को मनाया जाएगा। मुसलमानों द्वारा लगातार तीन दिन तक कुर्बानी की जाएगी। अल्लाह का क़ुरआन-ए-पाक में इरशाद है कि ‘ऐ महबूब अपने रब के लिए नमाज़ पढ़ो और कुर्बानी करो’। ईद-उल-अजहा पर्व एक अज़ीम पिता व अज़ीम पुत्र की कुर्बानी के लिए याद किया जाता है। पैगंबर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम व पैगंबर हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम से मंसूब एक वाकया इस पर्व की बुनियाद है। कुर्बानी का जानवर जिब्ह करने के वक्त बंदों की नियत होती है कि अल्लाह राजी हो जाए, यह भी नियत रहती है कि मैंने अपने अंदर की सारी बदअख्लाकी और बुराई सबको मैने इसी कुर्बानी के साथ जिब्ह कर दिया और इसी वजह से दीन-ए-इस्लाम में ज्यादा से ज्यादा कुर्बानी का हुक्म दिया गया है।