गोरखपुर

इस्लाम में मौजूद सियासत, हुक़ूमत व समाजी ज़रूरतों का प्रोग्राम: कारी अनस

गोरखपुर। शनिवार को अंजुमने गुलामाने मुस्तफा कमेटी की ओर से गुलरिया बाज़ार में जलसा-ए-ईद मिलादुन्नबी हुआ। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत हुई। नात-ए-पाक पेश की गई। बच्चों के बीच किरात, नात व तकरीर का मुकाबला भी हुआ। नायब काजी मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी ने बच्चों को ईनाम से नवाज़ा।

मुख्य वक्ता कारी मोहम्मद अनस रज़वी ने कहा कि पिछली सदियों के सभी मुस्लिम वैज्ञानिक और शोधकर्ता मदरसों से पढ़कर निकले थे। क़ुरआन और हदीस उनकी प्ररेणा के स्रोत थे। कई वैज्ञानिक और खोजकर्ता तो क़ुरआन, हदीस, फ़िक़्ह (धर्मशास्त्र) के विद्वान थे और साथ ही साथ वह नई-नई खोजों में भी व्यस्त रहते थे। इससे यही सिद्ध होता है कि दीन-ए-इस्लाम कहीं भी मनुष्य की प्रगति में रुकावट नहीं डालता। दीन-ए-इस्लाम विज्ञान और प्रगति का विरोधी नहीं है। हमारा मुकम्मल यक़ीन है कि दीन-ए-इस्लाम में सियासत, हुक़ूमत और पब्लिक की दुनियावी और पारलौकिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिए प्रोग्राम मौजूद है।

अध्यक्षता करते हुए नायब काजी मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम ने ही पश्चिम को इल्म व विज्ञान की राह दिखाई। आज भी यूरोप के पुस्तकालयों में मुसलमानों द्वारा विज्ञान के विभिन्न विषय पर ढ़ाई लाख किताबें रखी हैं जिनसे आज तक मुसलमान कोई फायदा नहीं उठा सके हैं। ईद मिलादुन्नबी का यही पैग़ाम है कि आप शरीअत पर अमल करें। क़ुरआन-ए-पाक के जरिए ही नई-नई वैज्ञानिक खोज संभव है। क़ुरआन-ए-पाक रिसर्च का बहुत बड़ा जरिया है। मुसलमान क़ुरआन-ए-पाक में गौरोफिक्र करें।

संचालन करते हुए मौलाना शेर मोहम्मद अमजदी ने कहा कि बड़ी अजीब बात है कि मुसलमानों ने अपना इतिहास भुला दिया। उसे वह हुनर तो छोड़ो, वह नाम ही याद नही जिनकी वज़ह से आधुनिक विज्ञान ने इतनी प्रगति की है। मुसलमान अतीत में एक सफल इंजीनियर भी रहे। एक चिकित्सक भी रहे। एक उच्च सर्जन भी रहे हैं। कभी इब्न-उल-हैशम बन कर प्रतिश्रवण के सिंहासन पर काबिज हो गये। तो कभी जाबिर इब्न हय्यान के रूप में रसायन विज्ञान का बाबा आदम बन कर सामने आये। जब यूरोप वाले दस्तख़त करना नहीं जानते थे हमनें लाखों किताबें लिख ली थी। आइये फिर उसी राह पर चलने का संकल्प लें। नौज़वानों से अपील किया कि वह मस्जिदों को अपने सज्दों से आबाद करें। बुराई, नशा, फिजूल बातों से दूरी अख़्तियार करें। पढ़ने-पढ़ाने का मिज़ाज़ व समाज बनाएं।

अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो शांति, खुशहाली, भाईचारे व तरक्की की दुआ मांगी गई। जलसे में हाफ़िज़ फारूक अहमद निज़ामी, हाफ़िज़ सिराजुद्दीन, शाह आलम, वकील अहमद, निसार अहमद, शमशेर अहमद, सैफ अली, मुन्ना, राहत अली, मुबारक अली, मुबारक अली, जमाल, कासिद इस्माइली आदि ने शिरकत की।

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