कविता नग़मा-ए-दीवाली 31/10/202431/10/2024अबु शहमा अंसारीComment(0) सारे जग पर वही छा गई रौशनीराम के शह्र से जो उठी रौशनी क्यूँ न दीवाली ये छाए माहौल परझूट पर सच की है फ़तहा की रौशनी उन की किस किस सिफ़त का बयाँ मैं करूँराम के हर अमल से उगी रौशनी हर तरफ़ रात में था अँधेरा बहुतजगमगाए दिये तो हुई रौशनी क्या अजब […]