सामाजिक

जिन्दगी सामने थी और तुम दुनियां मे उलझे रहे

लेखक: जगदीश सिंह, सम्पादक एक दिन शिकायत‌ तुम्हे वक्त से नहीं खुद से होगी! कि जिन्दगी सामने थी और तुम दुनियां मे उलझे रहेे! जीवन चक्र का अनवरत अबाध गति से शनै: शनै: आगे बढ़ते रहना प्रकृति प्रदत्त नियम है! इसमें न कहीं अवरोध है! न बिरोध है!आज के मतलबी संसार में जहां कोई नही […]