धार्मिक राजनीतिक

गुरु गोविंद सिंह और हमारे समाज में ग़लतफ़हमियाँ

लेखक: डॉ सलीमुददीन

आमतौर पर हमारे समाज में एक सोची-समझी साज़िश के तहत हमारी महान विभूतियों के सम्बन्ध में कुछ ऐसा दुष्प्रचार किया कि जिससे समाज में ग़लतफ़हमियाँ जन्म लेने लगीं। जिस का नतीजा यह निकला कि समाज में एक समुदाय दूसरे समुदाय को नफ़रत की निगाह से देखता है। और कहीं कहीं यह सूरते हाल दंगों की सूरत इख़्तियार कर लेती है। महाराणा प्रताप हों या शिवाजी या गुरु गोविंद सिंह इनकी (महाराणा प्रताप, शिवाजी आदि ) मुग़लों से लड़ाई, हिन्दू बनाम मुस्लिम युद्ध बनाकर पेश किया जाता है।
इसी तरह गुरु गोविंद सिंह जी की लड़ाई सिख बनाम मुस्लिम युद्ध के तौर पर पेश किया जाता है। जबकि यह सबसे बड़ा झूठ है जो गढ़ कर पेश किया जाता रहा है।
इसमेें कोई शक नहीं कि मुसलमानों के लिए मुग़ल बादशाह आइडियल या आदर्श का दर्जा नहीं रखते। बल्कि आइडियल तो मुहम्मद (सल्ल) और उनके साथी हैं।
मुग़ल कालीन इतिहास में मुग़लों ने जहां देश में अमन शान्ति प्रेम सहानुभूति का संदेश दिया हर समुदाय को अपने-अपने धर्म पर आज़ादी के साथ पालन करने का अवसर दिया दूसरे धर्मों का आदर ही नहीं किया बल्कि जागीरें भी दीं।
पूरे मुग़लकाल में कभी भी साम्प्रदायिक दंगे नहीं हुए।
जाति के आधार पर, धर्म के आधार किसी का शोषण नहीं हुआ किसी पर अत्याचार नहीं हुआ।
अंग्रेजों के काल में उन के अत्याचारों से तंग आकर जैसे पूरा देश खड़ा हो गयाअगर मुग़लकाल में अत्याचार हुए होते तो ऐसे ही मुग़ल काल में.. मुग़लो भगाओ आंदोलन चलते मगर पूरे 800 साल में कहीं ऐसा नहीं हुआ”।

डॉ बिशम्बर नाथ पांडे अपनी किताब में गुरु गोविंद सिंह जी के सम्बन्ध में लिखते हैं :-
” गुरु गोविंद सिंह जी के सैंकड़ों मुसलमान भक्त थे। सरहिंद के नवाब की आज्ञा से जब गुरु गोविंद के लड़कों को मृत्युदंड दिया गया तब मलेरकोटला के नवाब ने इस का कड़ा विरोध किया। नवाब मलेरकोटला की सेवा को गुरु गोविंद सिंह भूले नहीं। उन्होंने ने अपने शिष्यों को आज्ञा दी थी कि कभी भी कोई हथियार बंद सिख मलेरकोटला की रियासत में प्रवेश नहीं करेगा।
नबी खां, गनी खां और जनरल सैय्यद बेग ने अत्यंत संकट पूर्ण घड़ियों में गुरु गोविंद सिंह की सहायता की। अनगिनत मुस्लिम सैनिक गुरु गोविंद सिंह की सेना में भर्ती हुए और बहादुरी से लड़ते हुए गुरु गोविंद सिंह के लिए उन्होंने ने अपने प्राण न्योछावर किए।
सदोरा के पीर बदरुददीन ने, जिन्हें पीर बुद्धशाह भी कहते हैं, गुरु के लिए अपने चार बेटों, दो भाईयों तथा एक हजार सैनिकों के साथ वीरता पूर्वक लड़ते हुए अपने प्राण त्याग दिए। स्वयं अमृतसर के स्वर्ण मंदिर की नीव पांचवें गुरु ने लाहौर के मुसलमान फकीर साईं मियां मीर से रखवाई।

साभार: भारतीय संस्कृति मुग़ल विरासत : औरंगज़ेब के फ़रमान (बी एन पाण्डे) हिन्दी अकादमी, दिल्ली

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