धार्मिक

क़सीद ए ग़ौसीया और हज़रते रिफाई

क़सीद ए ग़ौसीया को ग़ौसे आज़म رضی اللہ تعالی عنہ ने अपनी हयाते ज़ींदगी में मजलीसे वाअज़ में मीम्बर पर वज्दानी केफियतमें ब हुकमे खुदावंदी तमाम अशआर ईरशाद फरमाए, क़सीद ए ग़ौसीयामें तक़रीबन 35 अशआर है और उसी में 33 वां शेअर हज़रत शैख़ सय्यद अहमद कबीर रिफाई رضی اللہ تعالی عنہ कि शान में आपके नामे अक़दस के साथ ईरशाद फरमाया, और वोह शेअर ये हे,

کَذَا اِبنُ الرِّفَاعِی کَانَ مِنیِ
فَیَسلُكُ فِی طَرِیقیِ وَ اشتِغَالِی

(तरजुमा :- ईसी तरह ईब्ने रिफाई भी मुज़से हे के मेरे हि शुग़ल और तरीके़ पर अमल पैरा है.)

मगर۔۔۔۔۔۔दौरे जदीद में ईस क़सीदे से सय्यद अहमद कबीर रिफाई कि शानमें जो शेअर था उसको खारीज (निकाल) कर दीया गया.जबके पुराने नुसखों में आज भी वो शेअर मौजुद हे, अैसा कयुं किया गया इसमे कया मसलीहत हे खुदा बेहतर जाने, मगर बज़ाहिर ये बुग़्जे रिफाई कि दलील है. ताजजुब होता हे और हैरत होती हे उन पर जीन्होंने शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी رضی اللہ تعالی عنہ के मशहुर क़सीदे से ईस शेअर को कम करने की नापाक जसारत व दीलेरी की आखीर उनमें ये शेअर कम करने कि हिम्मत व दिलेरी कैसे पैदा हो गई ?…
अगर सरकारे जीलानी कि हयाते ज़ींदगी का ज़माना होता और कोई ये क़दम उठाता तो उसे आप उसी वक़त दुन्या से खारीज कर देते और आखेरत में जो अंजाम होता वोह होता…..

नोट :- हज़रते ग़ौसे जीलानी कि नज़रमें हज़रत रिफाई का जो मक़ाम और मरतबा था और हज़रते रिफाई की नज़रमें शाहे जीलानी की जो क़द् र व मंज़ीलत हे वोह अेहले ईल्म से पोशीदा नहिं और आपके ज़माने की मोअतेबर किताबो में आज भी लीखा हुवा हे

*मुज़ेआता हे अंगारों पर चलना*
*में राहे हक़्क़ से कतराता नहिं हुं*

*अज़ क़लम :*

मौलाना मोहम्मद उसमान अख्तर अंसारी
खलीफ ए रिफाई व शाहे जीलानी क़ादरी
बडौदा, गुजरात.

बज़मे रिफाई
ख़ानक़ाहे रिफाईया
बडौदा, गुजरात.
9978344822

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