धार्मिक सामाजिक

मरीज़ की इयादत को जाना

सबसे पहले इयादत का माना समझ लें ताकि पोस्ट समझने में कोई दुशवारी न हो ”इयादत” के माने होते हैं कि बीमार की ख़बर पूछना यानि मरीज़ का ह़ाल ख़ैरियत पूछने जाना (फिरोज़ुल लुगत सफह 907)

इस में कोई शक नहीं कि सेह़त और बीमारी ज़िन्दगी का एक ह़िस्सा हैं कभी इंसान भरपूर सेह़त से लुत्फ़ अन्दोज़ होता है तो कभी बीमारी में मुब्तिला हो कर सब्र वो शुक्र कर के गुनाहों से पाक होता है, शरीयत हमें जिस तरह दूसरों की खुशियों में शरीक हो कर ख़ुशियाँ बढ़ाने की तरग़ीब देती है उसी तरह उनके ग़म में भी शरीक होने का हुक्म देती है दूसरों के दर्द को अपना दर्द समझने और उस का एहसास करने की ह़क़ीक़ी तस्वीर इयादत की सूरत में नज़र आती है मरीज़ की इयादत को जाना यानि मरीज़ का हाल चाल ख़ैरियत लेने जाना सुन्नत है ह़दीस में इस की बहुत फज़ीलत आई है कुछ ह़दीसें पेश करता हूँ मुलाह़ज़ा फरमायें

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मुसलमान पर मुसलमान के 5 पांच हुक़ूक़ (ह़क़) हैं

1, सलाम का जवाब देना, 2 मरीज़ की इयादत यानि ख़ैरियत हाल चाल पूछने जाना, 3 जनाज़े के साथ जाना, 4 दावत क़ुबूल करना, 5 छींकने वाले का जवाब देना, (जब الحمدللہ कहे) (सहीह बुखारी जिल्द 1 सफह 421 ह़दीस 1240—کتاب الجنائز، باب الأمر باتباع الجنائز،)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि मुसलमान जब अपने मुसलमान भाई की इयादत को गया तो वापस होने तक हमेशा जन्नत के फल चुनने में रहा (सहीह मुस्लिम शरीफ़ सफह 1389- ह़दीस 2568/41—– کتاب البر— الخ، باب فضل عیادۃ المریض،)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

जो मुसलमान किसी मुसलमान की इयादत के लिए सुबह को जाये तो शाम तक उसके लिए सत्तर (70) हज़ार फरिश्ते इस्तिग़फार करते हैं और शाम को जाए तो सुबह तक सत्तर हज़ार फरिश्ते इस्तिग़फार करते हैं और उसके लिए जन्नत में एक बाग होगा (जामे तिर्मिज़ी शरीफ़ जिल्द 2 सफह 290 ह़दीस 971—– أبواب الجنائز، باب ماجاء فی عیادۃالمریض)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

जो शख़्स अच्छी तरह वुज़ू कर के सवाब की नियत से अपने मुसलमान भाई की इयादत को जाए तो जहन्नम से 60 बरस की राह दूर कर दिया गया (सुनन अबी दाऊद जिल्द 3 सफह 248 ह़दीस 3097—کتاب الجنائز، باب فی فضل العیادۃعلی وضوء،)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम इरशाद फरमाते हैं कि

जो शख़्स मरीज़ की इयादत यानि हाल ख़ैरियत पूछने जाता है तो आसमान से मुनादी निदा करता है कि तू अच्छा है और तेरा चलना अच्छा और जन्नत की एक मंजिल को तूने ठीकाना बनाया (सुनन इब्ने माजा शरीफ़ जिल्द 2 सफह 192 ह़दीस: 1443—- أبواب ماجاء فی الجنائز، باب ماجاء فی ثواب من عاد مریضا،)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया

जब तू मरीज़ के पास जाए तो उस से कह कि तेरे लिए दुआ करे कि उसकी दुआ, दुआ ए मलाइका की मानिन्द है (सुनन इब्ने माजा शरीफ़ जिल्द 2 सफह 191 ह़दीस 1441—– أبواب ماجاء فی الجنائز، باب ماجاء فی عیادۃالمریض،)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया कि अफ़ज़ल इयादत यह है कि जल्द उठ आये (शुअबुल ईमान जिल्द 6 सफह 542 ह़दीस 9221—- باب فی عیادۃالمریض، فضل فی آداب العیادۃ،)

ह़दीस:- हुज़ूर सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जब कोई मुसलमान किसी मुसलमान की इयादत को जाए तो 7 बार यह दुआ पढ़े अगर मौत नहीं आई है तो उसे शिफ़ा हो जायेगी दुआ यह है

اَسئَلُ اللّٰہَ الْعَظِيمَ رَبِّ الْعَرْشِ الکَرِیمِ اَنْ یَّشْفِیْکَ

तर्जुमा— अल्लाह अज़ीम से सवाल करता हूँ, जो अर्शे करीम का मालिक है इस का कि तुझे शिफ़ा दे (सुनन अबी दाऊद जिल्द 3 सफह 251 ह़दीस: 3106 —- کتاب الجنائز، باب الدعاء للمریض)

माख़ूज़ अज़ बहारे शरीयत जिल्द 1 हिस्सा 4 सफह 803/806 (इयादत के फज़ाइल)

मरीज़ की इयादत को जाऐं और मर्ज़ की सख़्ती को देखे तो मरीज़ के सामने यह ज़ाहिर न करे कि तुम्हारी हालत खराब है और न इस तरह सिर हिलाये जिससे हालत ख़राब होना समझा जाता है, मरीज़ के सामने तो ऐसी बात करनी चाहिए जो उसके दिल को भली मालूम हो उसका मिजाज़ पूछें और तसल्ली दें

मरीज़ की इयादत में उसे तकलीफ पर सब्र की तलक़ीन की जाए, याद हों तो ऐसी ह़दीसे सुनाई जाये जिन में यह ज़िक्र हो कि बीमारी गुनाहों का कफ्फारह हो जाती है, उसको तौबा इस्तिग़फार और अल्लाह पाक को याद करने के लिए कहा जाए, और ह़ालते मर्ज़ में नमाज़ पढ़ने और जो इबादात (इबादत )कर सकता हो करने को कहे जाऐं, और जो हो सके मरीज़ को कुछ रक़म रुपये भी दिये जाऐं वरना मरीज़ के ह़ाल के मुनासिब कुछ खाने पीने की चीज़ें मसलन फल वगैरह दिये जाऐं मरीज़ अपने मर्ज़ की वजह से जिन दुन्यावी कामों और ज़िम्मेदारियों को पूरा न कर सके उस में भी मदद करने की कोशिश की जाऐ एक अहम बात यह है कि इयादत में इतनी देर न बैठा जाए कि मरीज़ या घर वाले तंग परेशान हो जाऐं, दौराने मुलाक़ात मरीज़ को तसल्ली दी जाए और ऐसी बातें की जायें जिन से वह खु़श हो और उसका दिल बेहले

हिकायत— एक शख़्स मरीज़ की इयादत को गया और काफ़ी देर तक बैठा रहा तो मरीज़ ने कहा लोगों की भीड़ की वजह से हमें तकलीफ़ हुई है वह आदमी कहने लगा मैं उठ कर दरवाज़ा बंद कर दूं? मरीज़ ने कहा हां लेकिन बाहर से (मिरक़ातुल मफ़ातीह़ जिल्द 4 सफह 60)

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